बुधवार, 25 जनवरी 2012

काली चाय से दिल का दौरा, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ काबू किया जा सकता है

शोधकर्ताओं का मानना है कि प्रतिदिन तीन प्याला चाय लेने से दिल के दौरे का खतरा 60 प्रतिशत तक कम हो जाता है और मधुमेह का खतरा भी टलता है। उनका कहना है कि चाय में स्वास्थ्यवर्धक एंटीऑक्सीडेंट्स मौजूद होते हैं जो दिल के दौरे से बचाने में मददगार हो सकते हैं। 

हाल ही में हुए अध्ययन में यह पाया गया है कि काली चाय ज्यादा फायदेमंद होती है। नियमित रूप से चाय का सेवन धमनियों में खून का थक्का जमने से रोकता है। इससे रक्तचाप नियंत्रित होता है और रक्त वाहिनियां खतरनाक तरीके से संकुचित नहीं होतीं। इस तरह से चाय दिल के दौरे के खतरे को कम करती है। दरअसल रक्त वाहिनियों के जरिए दिल की मांसपेशियों को ऑक्सीजन मिलती है और जब इनका मार्ग अवरुद्ध होता है तो दिल के दौरे का खतरा बढ़ता है।

कैरी रक्सटन व पामेला मैसन ने 40 शोधपत्रों की समीक्षा की थी। यह समीक्षा 'यूके न्यूट्रीशन बुलेटिन' में प्रकाशित हुई। इसमें काली चाय और रोगों की रोकथाम के बीच सम्बंध स्थापित किया गया है। रक्सटन व मैसन ने पाया कि जो लोग दिनभर में तीन से छह कप चाय लेते हैं उनमें चाय न पीने वालों या कम चाय पीने वालों की तुलना में दिल के रोगों का खतरा 30 से 57 प्रतिशत तक कम हो जाता है। 

रक्सटन ने कहा, "प्रमाण बताते हैं कि नियमित रूप से काली चाय का सेवन करने से रक्त परिसंचरण तंत्र से सम्बंधित बीमारियों व टाइप 2 प्रकार के मधुमेह का खतरा कम होता है।" शोधकर्ताओं ने कहा कि चाय की कितनी मात्रा फायदेमंद है, यह पता लगाने के लिए शोध की आवश्यकता है लेकिन हर रोज तीन से छह प्याला काली चाय लेना आपके दिल के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। 

इसके अलावा भी वेस्टर्न आस्ट्रेलिया यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि जो लोग दिन में तीन बार बिना दूध की चाय पीते हैं वे अपने रक्तचाप को औसतन दो से तीन प्वाइंट तक नियंत्रित करने में सफल रहते हैं. हो सकता है इतना नियंत्रण काफी न लगे लेकिन यह उच्च रक्तचाप के होने अथवा दिल की बीमारी के जोखिम को रोकने के लिये अत्यधिक प्रभावी है. 

अध्ययन के लेखक जोनाथन हागसन के हवाले से वैबएमडी ने बताया कि पहली बार पता लगा है कि लंबे समय तक काली चाय के इस्तेमाल से उच्च रक्तचाप वाले लोगों में इसके असर से रक्तचाप में दस प्रतिशत गिरावट आ सकती है और दिल के रोग तथा दिल के दौरे का खतरा भी दस प्रतिशत कम हो जाता है. 

अध्ययन का ब्योरा आर्काइव्स इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है. 

एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि चाय में पाया जाने वाले फ्लेवानोइड्स से रक्त नलिका की क्रिया में सुधार आता है और शरीर का वजन तथा पेट की वसा कम होती है.

शनिवार, 21 जनवरी 2012

महिला का नाम लेने भर से ही पुरुषों की बुद्धि पर ताला

ये कोई नई बात नहीं ऐसा तो सदियों से जाना और माना जाता हैं. आप भी जानिए, हाल ही का एक अध्ययन बताता है कि किसी खूबसूरत महिला का सिर्फ नाम लेने भर से ही पुरुषों की बुद्धि पर ताला लग जाता है। 

नीदरलैंड्स की रेडबाउड यूनिवर्सिटी के एक शोध में खुलासा हुआ है कि एसएमएस या ईमेल में किसी महिला के नाम की मौजूदगी ही पुरुषों की बुद्धि को प्रभावित करने के लिए काफी है। 

मिलर-मैकक्यून के अनुसार संज्ञानात्मक परीक्षणों की श्रृंखला में 90 पुरुष एवं महिलाओं को शामिल किया गया। न्यूरोसाइक्लॉजिकल परीक्षणों में इस्तेमाल होने वाले स्ट्रूप टेस्ट का इस अध्ययन में प्रयोग किया गया। इसके अलावा प्रतिभागियों को लिप-रीडिंग टास्क दिया गया, इसमें उनसे वेबकैम के सामने कुछ शब्द ऊंची आवाज में पढ़ने को कहा गया।

इन दोनों परीक्षणों के दौरान पुरुषों के हाव-भाव को नोटिस किया गया। इसके बाद पुरुष प्रतिभागियों को बताया गया कि महिलाएं उनकी गतिविधियों को गौर से देख रही हैं। तब पुरुषों॒ के हाव-भाव में जो बदलाव हुआ उसे अध्ययनकर्ताओं ने नोट किया। जबकि इन परीक्षणों का महिलाओं पर कोई असर नहीं पड़ा। इसी आधार पर यह नतीजा निकाला गया कि सामान्य परिस्थितियों में महिलाओं को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किससे बात कर रही हैं। 

शोध के प्रमुख, मनोचिकित्सक जॉन कैरमेन्स ने बताया कि-‘अचानक किसी महिला के बारे में बात होने पर पुरुषों की संज्ञानात्मक॒ शक्ति बिगड़ जाती है।’ 

अध्ययन के दौरान पुरुष प्रतिभागियों ने यह तक जानना जरूरी नहीं समझा कि वो कौन सी महिला है, जो उन॒ पर नजर रख रही है। 

कैरमेन्स॒ यह भी बताते हैं कि ऐसे मामलों पर महिलाओं की खूबसूरती की जानकारी नहीं होने के बावजूद भी पुरुष॒ प्रभावित हो जाते हैं।

संबंधित रिपोर्ट यहाँ पढ़ी जा सकती है 

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों से ऊबने लगे लोग

प्रमुख भारतीय उद्योग संगठन एसोचैम द्वारा 12 से 25 आयुवर्ग के दो हजार बच्चों और युवाओं पर कराए सर्वेक्षण के आधार पर यह बात कही गई है कि देश के लोग अब फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों से ऊबने लगे हैं। इस शोध के मुताबिक, इन साइटों पर शुरुआती दिनों में वे जितनी बार आते थे, उसके मुकाबले अब वे कम लॉग इन करने लगे हैं। जो इन साइटों पर आते हैं, उनमें ज्यादातर पहले के मुकाबले कम समय बिताते हैं। 
 
सर्वे के मुताबिक, देश के शहरी इलाकों में सोशल मीडिया के प्रति दिलचस्पी घटी है। अब वे सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर कम समय दे रहे हैं। ये सर्वे अहमदाबाद, बेंगलूर, चंडीगढ़, चेन्नई, दिल्ली-एनसीआर, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई और पुणे में पिछले साल अक्टूबर और दिसंबर के बीच कराया गया।

भले ही सोशल नेटवर्किंग आज भी सबसे बड़ी ऑनलाइन सक्रियता हो, लेकिन अब लोग इसे बोरिंग, कंफ्यूजिंग और डिप्रेशन देने वाली एक्टिविटी मानने लगे हैं। वे सोशल नेटवर्किंग साइटों पर जाने की जगह सूचना देने वाली साइट्स, ई-मेल और गेमिंग ज्यादा पसंद करने लगे हैं.  अपने वॉल पर लिखे गए कॉमेंट्स या दूसरे कंटेंट पर ये बेहद कम प्रतिक्रिया देने लगे हैं।

अधिकांश ने कहा कि फेसबुक सरीखी सोशल मीडिया के लगातार इस्तेमाल से आपसी बातचीत में कमी आ रही है। सेहत पर भी असर पड़ा है। एकाग्रता में कमी, अनिंद्रा, डिप्रेशन, बेचैनी, चिड़चिड़ेपन की शिकायत हुई है। इस वजह से वे ऑनलाइन सोशल मीडिया की जगह वास्तविक जीवन में सामाजिक संपर्क बढ़ा रहे हैं।

दिल्ली में जिन 200 लोगों से सवाल पूछे गए, उनमें से करीब 65 प्रतिशत का मानना था कि लगातार बेमतलब के स्टेटस अपडेट्स और एक जैसी चीजों को देख-देख कर हम बोर हो चुके हैं।

उन्होंने अपनी डिजिटल पहचान बढ़ाने के बजाय अन्य महत्वपूर्ण चीजों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। अब वे अपने पसंदीदा सोशल नेटवर्क को लेकर उतने उत्साहित नहीं हैं जितना शुरुआती दिनों में हुआ करते थे।

30 फीसदी ने कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने अकाउंट को या तो निष्क्रिय या फिर डिलीट कर दिया है। अब उन्हें इसमें रुचि नहीं है, जबकि कुछ का कहना है कि सोशल नेटवर्किंग के चलते उनकी निजता में खलल पड़ रही थी, इस वजह से उन्होंने इसका इस्तेमाल कम कर दिया है।

20 फीसदी लोगों का कहना है कि अब वे इन वेबसाइटों की बजाए अपने दोस्तों के संपर्क में रहने के लिए ब्लैकबेरी, मैसेंजर और मोबाइल की अन्य सुविधाओं का प्रयोग करना अधिक पसंद करते हैं।
 
सर्वे में 12- 25 साल के 2,000 से ज्यादा युवाओं से बातचीत की गई। इनमें लड़के-लड़कियों की तादाद बराबर थी। सर्वे में एक और दिलचस्प बात सामने आई कि लड़कों की तुलना में लड़कियां इन सोशल नेटवर्किंग साइटों पर अधिक संख्या में इकट्ठा होती हैं।

बुधवार, 18 जनवरी 2012

फेसबुक के दीवाने होते हैं अंदर से दुखी

जो लोग सोशल नेटवर्किंग साइट्स फेसबुक को दीवानों की तरह चाहते हैं उनके लिए एक बुरी खबर है। एक शोध के मुताबिक जो लोग फेसबुक को दिन में कई बार लॉगइन करते हैं उनके अंदर दुखी रहने की प्रवृत्ति ज्यादा पायी जाती है।

समाचार पत्र 'डेली मेल' ने ऊटा वैली विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के आधार पर  लिखा है कि जो लोग फेसबुक को दिन में कई बार प्रयोग करते हैं उनके अंदर फेसबुक का उपयोग ना करने वालों की तुलना में खुश रहने की आदत कम पायी जाती है। 

अध्ययन में यह बात सामने आई कि फेसबुक प्रयोग करने वाले लोगों में अपने पेज पर हंसते मुस्कराते चेहरे लगाने की प्रवृत्ति होती है, जिसके माध्यम से वे दूसरों को कमजोर संदेश देने की कोशिश की जाती है। ऐसे लोगो में यह चीज भी देखी गयी है कि वो इस बात को मानना भी नहीं चाहते है कि वो अंदर से दुखी है। 

दूसरों की हंसती मुस्कुराती अच्छी अच्छी फोटो देख कर ऐसे लोग यह मानते हैं कि सामने वाले की तुलना में वे हीन हैं और कुढ़ना शुरू कर देते हैं जिसका परिणाम कई बार टिप्पणियों में झलकने लगता है. 


इसके उलट, जो लोग वास्तविक जीवन में सामाजिक होते हैं वे आभासी दुनिया में जीने वाले लोगों की तुलना में कम दुखी होते हैं। यह निष्कर्ष वैज्ञानिक पत्रिका 'साइबरसाइकोलॉजी, बिहैवियर एंड सोशल नेटवर्किंग' में प्रकाशित हुआ है।

ऎसी ही एक रिपोर्ट पिछले वर्ष भी आई थी जिसे एंटी सोशल नेटवर्क का शीर्षक दिया गया था. 

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

फेसबुक के सहारे रची जा रही है आतंकी साजिश

एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि दुनिया भर में अधिकांश संगठित आतंकी गतिविधियाँ का लगभग 90 फीसदी काम अब सामाजिक नेटवर्किग वेबसाइट के जरिए हो रहा है। फेसबुक जैसे फोरम पर आतंकी फर्जी नाम से प्रोफाइल बनाकर लोगों के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल कर रहे हैं।

इजरायल स्थित हाफिया विश्वविद्यालय के संचार विभाग में प्रोफेसर गैब्रिएल वीमैन के अनुसार इन अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी प्रणालियों का इस्तेमाल कर आतंकी गुट नए दोस्त बना रहे हैं और इसकी कोई भौगोलिक सीमाएं नहीं हैं।



उन्होंने बताया कि फेसबुक, चैटरूम, यूट्यूब और अन्य ऐसी ही वेबसाइटों ने इंटरनेट की दुनिया में क्रांति ला दी और आतंकी गुट इस्लामिक आतंकी संगठन इनका जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। सामाजिक मीडिया के जरिए आतंकी संगठन फ्रेंड्स रिक्वेस्ट [दोस्ती के लिए आग्रह] भेजते हैं और नए दोस्त बनाकर उन्हें अपनी विचारधारा के प्रति समर्थन के लिए मनाने का प्रयास करते हैं। वे वीडियो क्लिप भी ऐसी वेबसाइटों पर अपलोड कर रहे हैं।

वीमैन ने भारत सहित दुनिया भर की आतंकी गतिविधियों पर काफी कार्य किया है और इस विषय पर न सिर्फ उनकी कई किताबें हैं बल्कि कई अनुसंधान पत्र भी प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने पासवर्ड से सुरक्षित की गई वेबसाइटों का भी दशक भर से अधिक समय तक अध्ययन किया है।

वीमैन ने दावा किया कि आतंकी गुट फेसबुक का दोहरा इस्तेमाल करते हैं। एक तो इसके जरिए वे नए सदस्यों की भर्ती करते हैं, दूसरे यह उनके लिए खुफिया जानकारी हासिल करने का मंच भी साबित होता है।

वीमैन के मुताबिक अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन जैसे देशों ने अपने सशस्त्र बलों को निर्देश दिया है कि वे फेसबुक खाते से सभी व्यक्तिगत जानकारिया हटा दें ताकि अल कायदा जैसे संगठन संवेदनशील सूचनाओं तक पहुँच न हासिल कर सकें।

हालांकि फेसबुक के कई सदस्य इस बात की परवाह नहीं करते कि वे किसके फ्रेंडशिप ऑफर [दोस्ती की पेशकश] को स्वीकार कर रहे हैं और किसे अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में संवेदनशील जानकारिया बाट रहे हैं। आतंकी भी समानांतर रूप से फर्जी प्रोफाइल बनाते हैं, जिससे वे अधिकाधिक उपयोग होने वाली सामाजिक नेटवर्किंग वेबसाइटों तक एक्सेस बना लेते हैं।

वीमैन ने बताया कि हमास की सैन्य विंग के ओपन फोरम में वेबसाइट पर दोस्तों के बीच कुछ इस तरह की बातें भी होती हैं, मैं जानना चाहता हूं कि सेना की जीप उड़ाने के लिए विस्फोटक कैसे बनाया जाए। उन्होंने बताया कि यह सवाल करने वाले को सवाल का जवाब तत्काल मिला और उसे विस्तृत निर्देश भी हासिल हुए।

इस बारे में हाफिया विश्वविद्यालय की रिपोर्ट यहाँ देखी जा सकती है

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