बुधवार, 25 जनवरी 2012
काली चाय से दिल का दौरा, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ काबू किया जा सकता है
शनिवार, 21 जनवरी 2012
महिला का नाम लेने भर से ही पुरुषों की बुद्धि पर ताला
इन दोनों परीक्षणों के दौरान पुरुषों के हाव-भाव को नोटिस किया गया। इसके बाद पुरुष प्रतिभागियों को बताया गया कि महिलाएं उनकी गतिविधियों को गौर से देख रही हैं। तब पुरुषों॒ के हाव-भाव में जो बदलाव हुआ उसे अध्ययनकर्ताओं ने नोट किया। जबकि इन परीक्षणों का महिलाओं पर कोई असर नहीं पड़ा। इसी आधार पर यह नतीजा निकाला गया कि सामान्य परिस्थितियों में महिलाओं को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किससे बात कर रही हैं।
शुक्रवार, 20 जनवरी 2012
फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों से ऊबने लगे लोग
भले ही सोशल नेटवर्किंग आज भी सबसे बड़ी ऑनलाइन सक्रियता हो, लेकिन अब लोग इसे बोरिंग, कंफ्यूजिंग और डिप्रेशन देने वाली एक्टिविटी मानने लगे हैं। वे सोशल नेटवर्किंग साइटों पर जाने की जगह सूचना देने वाली साइट्स, ई-मेल और गेमिंग ज्यादा पसंद करने लगे हैं. अपने वॉल पर लिखे गए कॉमेंट्स या दूसरे कंटेंट पर ये बेहद कम प्रतिक्रिया देने लगे हैं।
अधिकांश ने कहा कि फेसबुक सरीखी सोशल मीडिया के लगातार इस्तेमाल से आपसी बातचीत में कमी आ रही है। सेहत पर भी असर पड़ा है। एकाग्रता में कमी, अनिंद्रा, डिप्रेशन, बेचैनी, चिड़चिड़ेपन की शिकायत हुई है। इस वजह से वे ऑनलाइन सोशल मीडिया की जगह वास्तविक जीवन में सामाजिक संपर्क बढ़ा रहे हैं।
दिल्ली में जिन 200 लोगों से सवाल पूछे गए, उनमें से करीब 65 प्रतिशत का मानना था कि लगातार बेमतलब के स्टेटस अपडेट्स और एक जैसी चीजों को देख-देख कर हम बोर हो चुके हैं।
उन्होंने अपनी डिजिटल पहचान बढ़ाने के बजाय अन्य महत्वपूर्ण चीजों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। अब वे अपने पसंदीदा सोशल नेटवर्क को लेकर उतने उत्साहित नहीं हैं जितना शुरुआती दिनों में हुआ करते थे।
30 फीसदी ने कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने अकाउंट को या तो निष्क्रिय या फिर डिलीट कर दिया है। अब उन्हें इसमें रुचि नहीं है, जबकि कुछ का कहना है कि सोशल नेटवर्किंग के चलते उनकी निजता में खलल पड़ रही थी, इस वजह से उन्होंने इसका इस्तेमाल कम कर दिया है।
20 फीसदी लोगों का कहना है कि अब वे इन वेबसाइटों की बजाए अपने दोस्तों के संपर्क में रहने के लिए ब्लैकबेरी, मैसेंजर और मोबाइल की अन्य सुविधाओं का प्रयोग करना अधिक पसंद करते हैं।
सर्वे में 12- 25 साल के 2,000 से ज्यादा युवाओं से बातचीत की गई। इनमें लड़के-लड़कियों की तादाद बराबर थी। सर्वे में एक और दिलचस्प बात सामने आई कि लड़कों की तुलना में लड़कियां इन सोशल नेटवर्किंग साइटों पर अधिक संख्या में इकट्ठा होती हैं।
बुधवार, 18 जनवरी 2012
फेसबुक के दीवाने होते हैं अंदर से दुखी
शुक्रवार, 13 जनवरी 2012
फेसबुक के सहारे रची जा रही है आतंकी साजिश
इजरायल स्थित हाफिया विश्वविद्यालय के संचार विभाग में प्रोफेसर गैब्रिएल वीमैन के अनुसार इन अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी प्रणालियों का इस्तेमाल कर आतंकी गुट नए दोस्त बना रहे हैं और इसकी कोई भौगोलिक सीमाएं नहीं हैं।
उन्होंने बताया कि फेसबुक, चैटरूम, यूट्यूब और अन्य ऐसी ही वेबसाइटों ने इंटरनेट की दुनिया में क्रांति ला दी और आतंकी गुट इस्लामिक आतंकी संगठन इनका जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। सामाजिक मीडिया के जरिए आतंकी संगठन फ्रेंड्स रिक्वेस्ट [दोस्ती के लिए आग्रह] भेजते हैं और नए दोस्त बनाकर उन्हें अपनी विचारधारा के प्रति समर्थन के लिए मनाने का प्रयास करते हैं। वे वीडियो क्लिप भी ऐसी वेबसाइटों पर अपलोड कर रहे हैं।
वीमैन ने भारत सहित दुनिया भर की आतंकी गतिविधियों पर काफी कार्य किया है और इस विषय पर न सिर्फ उनकी कई किताबें हैं बल्कि कई अनुसंधान पत्र भी प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने पासवर्ड से सुरक्षित की गई वेबसाइटों का भी दशक भर से अधिक समय तक अध्ययन किया है।
वीमैन ने दावा किया कि आतंकी गुट फेसबुक का दोहरा इस्तेमाल करते हैं। एक तो इसके जरिए वे नए सदस्यों की भर्ती करते हैं, दूसरे यह उनके लिए खुफिया जानकारी हासिल करने का मंच भी साबित होता है।वीमैन के मुताबिक अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन जैसे देशों ने अपने सशस्त्र बलों को निर्देश दिया है कि वे फेसबुक खाते से सभी व्यक्तिगत जानकारिया हटा दें ताकि अल कायदा जैसे संगठन संवेदनशील सूचनाओं तक पहुँच न हासिल कर सकें।
हालांकि फेसबुक के कई सदस्य इस बात की परवाह नहीं करते कि वे किसके फ्रेंडशिप ऑफर [दोस्ती की पेशकश] को स्वीकार कर रहे हैं और किसे अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में संवेदनशील जानकारिया बाट रहे हैं। आतंकी भी समानांतर रूप से फर्जी प्रोफाइल बनाते हैं, जिससे वे अधिकाधिक उपयोग होने वाली सामाजिक नेटवर्किंग वेबसाइटों तक एक्सेस बना लेते हैं।
वीमैन ने बताया कि हमास की सैन्य विंग के ओपन फोरम में वेबसाइट पर दोस्तों के बीच कुछ इस तरह की बातें भी होती हैं, मैं जानना चाहता हूं कि सेना की जीप उड़ाने के लिए विस्फोटक कैसे बनाया जाए। उन्होंने बताया कि यह सवाल करने वाले को सवाल का जवाब तत्काल मिला और उसे विस्तृत निर्देश भी हासिल हुए।
इस बारे में हाफिया विश्वविद्यालय की रिपोर्ट यहाँ देखी जा सकती है
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