बुधवार, 10 नवंबर 2010

महिलाओं के लिए सास है सबसे बड़ा सिरदर्द!

भले ही ज्यादातर पुरुषों के लिए चुटकुलों का एक बड़ा हिस्सा सास पर केंद्रित होता है, लेकिन महिलाओं के लिए उनकी सास ठिठोली की वस्तु नहीं है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक अधिकतर महिलाओं ने कहा है कि सास द्वारा उनके परवरिश के तरीके पर उठाए गए सवाल पीड़ा देते हैं।

गर्गल वेबसाइट द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के मुताबिक दस में से सात महिलाओं का मानना है कि उन्हें ऐसी सास के साथ रहना पड़ता है जो उनके परवरिश की आलोचना करती हैं। वे बच्चों के पालन पोषण के तरीके पर सवाल उठाती रहती हैं। यह सर्वेक्षण एक हजार महिलाओं पर किया गया। डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादातर महिलाओं ने कहा कि वह अपनी सास को समझ नहीं पातीं।


सर्वेक्षण में 23 प्रतिशत महिलाओं ने सास द्वारा रोजमर्रा के कामों में दखल देने की शिकायत की। 20 प्रतिशत ने बेटे को अधिक प्यार देने और 18 प्रतिशत ने पोते-पोतियों को अधिक प्यार देकर बिगाड़ने की शिकायत की

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

'दिमाग की बत्ती' जलने में 20 लाख साल लग गए!

ताजा अध्ययन से यह पता चला है कि जिंदगी को सरल बनाने वाले उपकरण जैसे पत्थर की कुल्हाड़ी आदि विकसित करने में इंसान को बहुत समय लगा। गुफा मानव को दिमाग का इस्तेमाल करने में लगभग 20 लाख का समय लग गया।

शुरुआती इंसानों को मन में उपकरण बनाने के विचार तो आए, लेकिन उसे हकीकत में बदलने वाला बुद्धि कौशल उसके पास उस समय मौजूद नहीं था। लंदन के इंपीरियल कॉलेज द्वारा किया गया शोध बताता है कि तबके मनुष्यों का दिमाग जटिल विचारों को हकीकत में बदलने की क्षमता नहीं रखता था।



शोधकर्ताओं के मुताबिक, भाषा का विकास और किसी उपकरण को डिजाइन करने का विचार दिमाग के एक ही हिस्से से पैदा होता है, ऐसे में ये दोनों कौशल साथ-साथ ही विकसित हुए होंगे। वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. एल्डो फैजल के मुताबिक पूर्वजों द्वारा पत्थर के इस्तेमाल से लेकर हाथ में पकड़ी जा सकने वाले कुल्हाड़ी बनाने तक का सफर लंबा था।

इंसानी दिमाग के कौशल का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर मॉडल बनाया। जिसमें शुरुआती इंसानों के हाथ का इस्तेमाल समझने के लिए डाटा ग्लव्ज (दस्ताने) तैयार किए गए। इनमें लगे सेंसरों से पता चला कि करीब 25 लाख साल पहले पेलियोलिथिक काल में इंसान पत्थरों का इस्तेमाल करता था, जबकि इस काल के अंत यानी 20 लाख साल बाद वह हाथ से पकड़ी जा सकने वाली कुल्हाड़ी बनाने लगा।

सोमवार, 1 नवंबर 2010

फूल गोभी व बंध गोभी के शौकीन हो जाएँ सावधान

फूल गोभी व बंध गोभी का सेवन करने वाले सावधान हो जाएं। क्योंकि लगातार इसके सेवन से मस्तिष्क का विकास रुक सकता है। शरीर में आयोडीन की मात्रा घट जाती है, जिससे शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होता है। यह खुलासा आयोडीन न्यूट्रीशनल स्टेटस आफ एडोलेसेन्ट्स विषय पर पूर्णिया कालेज के प्राचार्य डा. टीवीआरके राव व महिला कालेज पूर्णिया की प्राध्यापिका डा. तुहिना विजय द्वारा किये गए शोध में हुआ है। यह शोध आल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंस [एम्स] के द इंडियन जोनल आफ पीडियेट्रीक्स, नई दिल्ली में भी प्रकाशित हो चुका है।


शोध के संबंध में डा. राव ने बताया कि फूल गोभी व बंध गोभी के अलावा मूली, शकरकंद, बांस के कोपल, सरसों, सेम व शलगम में थायोसायनेट पाया जाता है। इन भोज्य पदार्थो को ग्वायट्रोजेनिक फूड भी कहा जाता है।

राव ने कहा कि इनमें थायोसायनेट होने के कारण यह शरीर में आयोडीन के अवशोषण को रोकता है, जबकि आयोडीन की जरुरत शरीर के सभी कोशिकाओं को होती है। ऐसे में अगर लगातार कई महीनों तक दूसरी हरी सब्जियों का सेवन न कर केवल इन्हीं सब्जियों का सेवन किया जाता है तो शरीर को आयोडीन न मिलकर थायोसायनेट ही मिलता रहता है, जो शरीर के लिए हानिकारक होता है।

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि थायोसायनेट युक्त सब्जियों के सेवन में आयोडीन युक्त नमक का उपयोग करना चाहिए।