शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

ऑक्सीटोसिन वाले दूध से दूसरे समुदायों और जातियों के प्रति विद्वेष होता है!!!

नीदरलैंड में एम्सर्टडम विश्विद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर दुधारू पशु से ज्यादा दूध लेने के लिए उसे 'ऑक्सीटोसिन' का इंजेक्शन दिया जाए तो उस दूध का सेवन करनेवाले में कई विकार पैदा हो सकते हैं। शोध के मुताबिक़ इस तरह के दूध के सेवन से अपने समुदाय और जाति को दूसरे से श्रेष्ठ समझने का भाव बलवती होता है।


ये शोध हाल में अमरीकन एसोसिएशन ऑफ़ एडवांसमेंट ऑफ़ साइंस की पत्रिका 'प्रोसीडिंग्स नेशनल अकेडमी ऑफ़ साइंस' में प्रकाशित हुआ है। यह उल्लेखनीय है कि भारत में कई स्थानों पर दूध विक्रेता और पशुपालक अपने मवेशियों में दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए नियमित तौर पर ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन का इस्तेमाल करते हैं।

जोधुपर स्थित जेएनवी विश्विद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्रमुख प्रोफ़ेसर नरपत शेखावत कहते है कि भारत में ऐसी दवाइयों पर लगाई गई रोक को सख्ती से पालन किया जाए क्योंकि हम एक जाति समुदायों वाले विविधपूर्ण समाज का हिस्सा हैं। नरपत शेखावत कहते हैं, ''मुझे लगता है हाल के वर्षो में जातीय विवाद और द्वंद जिस स्तर पर उभरा है उसमें इस तरह के दूध के इस्तेमाल ने मदद की होगी इस बात से पूरी तरह से इनकार नहीं किया जा सकता है.''

अब तक ऑक्सीटोसिन को ऐसा रसायन माना जाता था जो जानवरों में अपने बछड़े के प्रति प्रेम का भाव का पैदा करता है जिससे उसे ज़्यादा दूध उतरता था। लेकिन अब शोधकर्ताओं ने एक नई बात पाई है कि जहाँ ये अपने समुदाय के भीतर एक दूसरे के प्रति प्रेम और विश्वास को बढ़ावा देता है वहीं दूसरे समुदायों और जातियों के प्रति अविश्वास का भाव का निर्माण करता है।

शोध के अनुसार दूसरे समुदायों के प्रति पूर्वाग्रह की धारणा उत्पन्न होने से जातीय झगडे़ बढ़ सकते हैं।

रिपोर्ट का सारांश यहाँ पढ़ा जा सकता है। PDF में पूरी रिपोर्ट कुछ शर्तों के साथ यहाँ मौज़ूद है


(लेखांश सौजन्य: बीबीसी वेबसाईट)