बुधवार, 10 नवंबर 2010

महिलाओं के लिए सास है सबसे बड़ा सिरदर्द!

भले ही ज्यादातर पुरुषों के लिए चुटकुलों का एक बड़ा हिस्सा सास पर केंद्रित होता है, लेकिन महिलाओं के लिए उनकी सास ठिठोली की वस्तु नहीं है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक अधिकतर महिलाओं ने कहा है कि सास द्वारा उनके परवरिश के तरीके पर उठाए गए सवाल पीड़ा देते हैं।

गर्गल वेबसाइट द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के मुताबिक दस में से सात महिलाओं का मानना है कि उन्हें ऐसी सास के साथ रहना पड़ता है जो उनके परवरिश की आलोचना करती हैं। वे बच्चों के पालन पोषण के तरीके पर सवाल उठाती रहती हैं। यह सर्वेक्षण एक हजार महिलाओं पर किया गया। डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादातर महिलाओं ने कहा कि वह अपनी सास को समझ नहीं पातीं।


सर्वेक्षण में 23 प्रतिशत महिलाओं ने सास द्वारा रोजमर्रा के कामों में दखल देने की शिकायत की। 20 प्रतिशत ने बेटे को अधिक प्यार देने और 18 प्रतिशत ने पोते-पोतियों को अधिक प्यार देकर बिगाड़ने की शिकायत की

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

'दिमाग की बत्ती' जलने में 20 लाख साल लग गए!

ताजा अध्ययन से यह पता चला है कि जिंदगी को सरल बनाने वाले उपकरण जैसे पत्थर की कुल्हाड़ी आदि विकसित करने में इंसान को बहुत समय लगा। गुफा मानव को दिमाग का इस्तेमाल करने में लगभग 20 लाख का समय लग गया।

शुरुआती इंसानों को मन में उपकरण बनाने के विचार तो आए, लेकिन उसे हकीकत में बदलने वाला बुद्धि कौशल उसके पास उस समय मौजूद नहीं था। लंदन के इंपीरियल कॉलेज द्वारा किया गया शोध बताता है कि तबके मनुष्यों का दिमाग जटिल विचारों को हकीकत में बदलने की क्षमता नहीं रखता था।



शोधकर्ताओं के मुताबिक, भाषा का विकास और किसी उपकरण को डिजाइन करने का विचार दिमाग के एक ही हिस्से से पैदा होता है, ऐसे में ये दोनों कौशल साथ-साथ ही विकसित हुए होंगे। वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. एल्डो फैजल के मुताबिक पूर्वजों द्वारा पत्थर के इस्तेमाल से लेकर हाथ में पकड़ी जा सकने वाले कुल्हाड़ी बनाने तक का सफर लंबा था।

इंसानी दिमाग के कौशल का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर मॉडल बनाया। जिसमें शुरुआती इंसानों के हाथ का इस्तेमाल समझने के लिए डाटा ग्लव्ज (दस्ताने) तैयार किए गए। इनमें लगे सेंसरों से पता चला कि करीब 25 लाख साल पहले पेलियोलिथिक काल में इंसान पत्थरों का इस्तेमाल करता था, जबकि इस काल के अंत यानी 20 लाख साल बाद वह हाथ से पकड़ी जा सकने वाली कुल्हाड़ी बनाने लगा।

सोमवार, 1 नवंबर 2010

फूल गोभी व बंध गोभी के शौकीन हो जाएँ सावधान

फूल गोभी व बंध गोभी का सेवन करने वाले सावधान हो जाएं। क्योंकि लगातार इसके सेवन से मस्तिष्क का विकास रुक सकता है। शरीर में आयोडीन की मात्रा घट जाती है, जिससे शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होता है। यह खुलासा आयोडीन न्यूट्रीशनल स्टेटस आफ एडोलेसेन्ट्स विषय पर पूर्णिया कालेज के प्राचार्य डा. टीवीआरके राव व महिला कालेज पूर्णिया की प्राध्यापिका डा. तुहिना विजय द्वारा किये गए शोध में हुआ है। यह शोध आल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंस [एम्स] के द इंडियन जोनल आफ पीडियेट्रीक्स, नई दिल्ली में भी प्रकाशित हो चुका है।


शोध के संबंध में डा. राव ने बताया कि फूल गोभी व बंध गोभी के अलावा मूली, शकरकंद, बांस के कोपल, सरसों, सेम व शलगम में थायोसायनेट पाया जाता है। इन भोज्य पदार्थो को ग्वायट्रोजेनिक फूड भी कहा जाता है।

राव ने कहा कि इनमें थायोसायनेट होने के कारण यह शरीर में आयोडीन के अवशोषण को रोकता है, जबकि आयोडीन की जरुरत शरीर के सभी कोशिकाओं को होती है। ऐसे में अगर लगातार कई महीनों तक दूसरी हरी सब्जियों का सेवन न कर केवल इन्हीं सब्जियों का सेवन किया जाता है तो शरीर को आयोडीन न मिलकर थायोसायनेट ही मिलता रहता है, जो शरीर के लिए हानिकारक होता है।

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि थायोसायनेट युक्त सब्जियों के सेवन में आयोडीन युक्त नमक का उपयोग करना चाहिए।

रविवार, 31 अक्तूबर 2010

मर्द घर में खुशी-खुशी बैठने को राजी: महिलाएं दफ्तर का काम संभाल रहीं

एक ताजा सर्वे में यह खुलासा हुआ है कि ब्रिटेन के अधिकतर मर्द घर में खुशी-खुशी बैठने को राजी हैं जबकि महिलाएं दफ्तर का काम संभाल रही हैं। जी हां, ब्रिटेन की एक तिहाई महिलाएं न सिफ घर का खर्च चला रही हैं बल्कि उन्हें पुरूषों से ज्यादा तनख्वाह भी मिल रही है। एक हजार से ज्यादा ब्रिटनेवासियों पर किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 86 फीसदी पुरूषों को इससे को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी बीवी या गर्लफ्रैंड उनसे ज्यादा कमा रही हैं। उनके लिए तो यह बेहद सुखद अनुभव है।



उल्लेखनीय है कि कार का बीमा करने वाली एक कंपनी शिलाज व्हील्स ने एक सर्वे किया जिसका नाम था "वर्किग वुमन"। इसमें पाया गया कि 29 फीसदी महिलाएं अपने घर में ज्यादा कमाई कर रही हैं। 1960 के दौर में ब्रिटेन में सिर्फ चार फीसदी औरतें ही घर में अधिक तनख़्वाह लाती थीं पर आज के दौर में इसमें काफी बदलाव आया है।

सर्वे के अनुसार 44 प्रतिशत पुरूष अपनी मर्जी और खुशी से घर पर बैठने को तैयार हैं और उन्हें घर के काम करने में कतई ऎतराज नहीं है। यही नहीं उन्हें अपने हमराही को घर का मुखिया बनाने से भी संकोच नहीं है जो घर के लिए कमाई करे। 54 फीसदी मर्द अपने पार्टनर के कॅरियर के लिए खुद के कॅरियर की तिलांजलि देने के लिए भी तैयार हैं।

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

फर्राटेदार अंग्रेजी नहीं है सम्मान की गारंटी

यदि आप यह सोचते हैं कि केवल अंग्रेजी बोलने से ही आपको सम्मान मिलेगा तो आप शायद गलत हैं। दैनिक भास्कर डॉट कॉम के देश के 17 शहरों में कराए गए सर्वे में 65 फीसदी लोगों ने यह विचार व्यक्त किए हिंदी दिवस पर कराए गए इस सर्वे ने आम हिंदुस्तानी के मन में बरसों से बैठी इस मान्यता को ध्वस्त कर दिया है कि केवल फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना ही कहीं भी आपको सम्मान दिलाने की गारंटी बन सकता है।



हालांकि, सर्वे में चौंकाने वाली यह बात भी निकल कर आई है कि 70 फीसदी लोग विभिन्न सरकारी और निजी कामों के दौरान भरे जाने वाले फॉर्म में हिंदी का विकल्प होने के बावजूद अंग्रेजी का इस्तेमाल करते हैं। दिल्ली, मुंबई लखनऊ के अलावा मप्र, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा में हुए इस सर्वे में 2170 से अधिक लोगों ने भागीदारी की।

इसी तरह एक अन्य प्रश्न के जवाब में अधिकांश लोग बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उच्च शिक्षा में भी हिंदी को एक विषय के रूप में रखने के पक्ष में हैं। 57 फीसदी लोगों ने इसमें सहमति जताई है जबकि 25 फीसदी लोग हिंदी को प्राइमरी स्कूल तक ही रखने के पक्ष में हैं।

मीडिया पर हिंदी को विकृत करने के आरोप के प्रश्न पर लगभग 48 फीसदी लोगों का मानना है कि इसी बहाने कम से कम हिंदी का प्रसार तो हो रहा है। जबकि 27 फीसदी लोग कहते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हिंग्लिश का प्रयोग बढ़ रहा है। हालांकि 20 फीसदी लोग इसे बेहद खराब मानते हैं।

सर्वे में उभर कर आया है कि हिंदी को सर्वाधिक लोकप्रिय बनाने में मीडिया के साथ बॉलीवुड की बहुत बड़ी भूमिका है। हिंदी के प्रसार में सरकारी प्रयासों को लोग लगभग नगण्य मानते हैं। 38 फीसदी लोग मीडिया को और 52 फीसदी लोग बॉलीवुड को हिंदी के प्रसार और विस्तार के लिए जिम्मेदार मानते हैं।

इसी तरह देश में अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या में खासी बढ़ोतरी के बावजूद हिंदुस्तानी बड़े शोरूम, होटलों या हवाई अड्डे के काउंटर पर पूछताछ करने के लिए बेझिझक हिंदी का ही इस्तेमाल करते हैं। लगभग 52 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें ऐसी जगहों पर हिंदी के प्रयोग में शर्म नहीं आती। जबकि 26 प्रतिशत का कहना है कि वे अंग्रेजी को ही तज्‍जच्चो देते हैं।

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

महिलाओं ने माना कि दुष्कर्म के लिए बलात्कारी से ज्यादा, पीड़ित महिला जिम्मेदार

ब्रिटेन में किए गए एक सर्वे में चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं। सर्वे में शामिल 54 फीसदी महिलाओं का मानना है कि दुष्कर्म के लिए दुष्कर्मी से ज्यादा, पीड़ित महिला जिम्मेदार होती हैं। यह सर्वे 18 से 24 साल की एक हजार महिलाओं के बीच किया गया है। इनमें 24 फीसदी महिलाओं का कहना है कि शॉर्ट स्कर्ट पहनने के चलते दुष्कर्मी उनकी तरफ आकर्षित होता है और उसका मनोबल बढ़ता है। इन महिलाओं का यह भी कहना है कि दुष्कर्मी के साथ ड्रिंक और उसके साथ बातचीत करना भी उसको दुष्कर्म के लिए उकसाता है। इसलिए ये महिलाएं पीड़ित को दुष्कर्म के लिए जिम्मेदार ठहराती हैं।


लगभग 20 फीसदी महिलाओं का मानना है कि अगर पीड़ित दुष्कर्मी के घर जाती है तो वह कहीं ना कहीं दुष्कर्म के लिए जिम्मेदार होती है। लगभग 13 फीसदी महिलाओं ने कहा कि दुष्कर्मी के साथ उत्तेजक डांस और उसके साथ फ्लर्ट करना भी दुष्कर्म के लिए थोड़ा बहुत उत्तरदायी है।

इस सर्वे में एक और दिलचस्प बात सामने आई है कि एक तिहाई पुरुषों ने दावा किया है कि अगर अपने पार्टनर की इच्छा के खिलाफ वह सेक्स करते हैं, तो इसे वे दुष्कर्म मानने के लिए तैयार नहीं है। सर्वे में एक और बात सामने आई है कि लगभग 20 फीसदी महिलाएं तो दुष्कर्म की रिपोर्ट ही नहीं करती है। ये महिलाएं शर्म के चलते ऐसा नहीं करती हैं। चौंकानेवाली बात यह कि सरकार के तमाम दावों के बावजूद ब्रिटेन में सिर्फ 14 फीसदी दुष्कर्म मामलों में ही सजा मिल पाती है।

इस संबंध में बीबीसी की रिपोर्ट पढ़ी जा सकती है

सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

महिलाओं की बजाए पुरूष ज़्यादा झूठ बोलते हैं!

ऐसा अक्सर सुना जाता है कि पुरुष ज्यादा झूठ बोलते हैं, जबकि महिलाएं ज्यादा रोती हैं। एक नए अध्ययन में भी इस बात का दावा किया गया है कि पुरुष दिन में छह बार झूठ बोलते हैं। वे महिलाओं की तुलना में दोगुना झूठ बोलते हैं। 'डेली मेल' में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्तायों ने अपने अध्ययन में यह पाया है कि पुरुष अपने पार्टनर, बॉस और सहकर्मियों से दिन भर में औसतन छह बार झूठ बोलते हैं। महिलाएं केवल तीन बार ही झूठ बोलती हैं। यह अध्ययन लगभग 2,000 लोगों पर किए गए सर्वे पर आधारित है।

इसमें यह भी बताया गया है कि पुरुष और महिलाओं द्वारा बोला जाने वाला एक आम झूठ यह है कि 'सब कुछ ठीक है। मैं बिल्कुल ठीक हूं।' अध्ययन के मुताबिक, पुरुष अपने प्रेम प्रसंगों को लेकर ज्यादा झूठ बोलते हैं, जबकि अधिकतर महिलाएं खरीदारी के दौरान की गई खरीदारी के बारे में सच बोलने से कतराती हैं। 83 प्रतिशत युवाओं (पुरुष, महिला दोनों) का यह कहना था कि वे यह आसानी से बता सकते हैं कि उनका साथी झूठ बोल रहा है अथवा नहीं।

शारीरिक भाषा विशेषज्ञ रिचर्ड न्यूमैन ने कहा कि ज्यादातर लोग संकेतों को नहीं भांप पाते हैं। उनका यह अनुमान है कि अगर कोई सच छिपा रहा है तो वह व्यक्ति अपना चेहरा छिपाने की कोशिश करेगा और नजरें नहीं मिलाएगा। दरअसल, हकीकत इसके ठीक उलट है। झूठ बोलने वाला आदमी आपको यह यकीन दिलाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाता है कि वह जो बोल रहा है वह बिल्कुल सत्य है। वह सामने वाले से नजरें मिलाकर बात करता है। ऐसे में सामने वाला व्यक्ति धोखा खा जाता है और उसकी बातों पर यकीन भी कर लेता है।

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

किस वजह से पुरुष अपनी सास से डरते हैं?

आखिर किस वजह से पुरुष अपनी सास से डरते हैं? सुनने में अजीब लगे लेकिन एक सर्वे के मुताबिक, उन्हें इस बात का डर रहता है कि एक दिन उनकी जीवनसाथी भी उनकी सास की तरह दिखने लगेगी। सर्वे के मुताबिक, पुरुष के जीवन में संबंधों को लेकर यह काफी बड़ा डर होता है। कई लोगों के लिए सास का दुख, कभी गर्लफ्रेंड नहीं होने के दुख से भी बड़ा होता है। एक जानी मानी बीयर कंपनी ने इस सर्वे में 2,000 लोगों की राय ली।

सर्वे में पाया गया कि केवल 12 फीसदी मर्दों को अकेलेपन का भय सताता है जबकि 11 फीसदी लोगों की चिंता लड़की से चैटिंग को लेकर थी।

डेली एक्सपेस में छपी एक खबर में मानवीय रिश्तों के जानकार जो बारनेट ने कहा कि आपको मालूम करना है कि आपकी गर्लफ्रेंड भविष्य में कैसी लगेगी तो उसकी मां से मिलिए। अगर वह दुबली पतली है लेकिन उसकी मां मोटी है, तो फिर गर्लफ्रेंड के भी मोटे होने के पूरे आसार रहते हैं।

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

दोपहर के वक्त महिलाओं से बहसबाजी पुरुषों को भारी पड़ती है

एक सर्वेक्षण से पता चला है कि दोपहर के वक्त महिलाओं से बहसबाजी पुरुषों को भारी पड़ सकती है। लोगों के मूड पर किए गए एक सर्वेक्षण के नतीजों पर यकीन करें, तो पुरुषों को यह सलाह अमल में जरूर लाना चाहिए वरना उन्हें महिलाओं से मात खानी पड़ सकती है। अध्ययन के नतीजों में यह भी कहा गया है कि यदि महिलाएं पुरुषों से कुछ कहना चाहती हैं तो उन्हें शाम के 6 बजे तक इंतजार करना चाहिए क्योंकि उस वक्त पुरुष अपने करीबी लोगों की मुराद पूरी करते हैं।



कई दिलचस्प नतीजे देने वाली इस अध्ययन में ब्रिटेन के 1000 पुरुषों और महिलाओं को शामिल किया गया था। अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि जब किसी महिला को तनख्वाह में इजाफे या प्रोमोशन की बात अपने बॉस से कहनी हो तो वह यह काम सुबह में न कर दोपहर एक बजे करें। इस वक्त महिला की मुराद पूरी होने की ज्यादा संभावना रहती है। नतीजों के मुताबिक, दोपहर एक बजे के बाद का समय ऐसा होता है जब मैनेजर अपने कर्मचारियों की मांग के प्रति बहुत उदार होता है।

डेली मेल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाएं यह जानकर काफी खुश होंगी कि मूड में होने वाले उतार-चढ़ाव से सिर्फ वहीं पीड़ित नहीं हैं बल्कि ऐसा पुरुषों में भी देखा जाता है।

सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

वे कौन सी चीजें हैं जिनसे किसी महिला को खूबसूरत माना जाता है?

एक नई अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया है कि वे कौन सी चीजें हैं जिनसे लगभग सभी संस्कृतियों में किसी महिला को शारीरिक तौर पर खूबसूरत माना जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं की सुंदरता के ये अहम पैमाने हैं जवां लुक, लंबाई, पतली छरहरी कमर और लंबी बांहें हैं।


न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी, हॉन्गकॉन्ग पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी और तियानजिन पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों की एक इंटरनैशनल टीम ने इस बारे में अध्ययन किया। टीम ने दावा किया है कि शरीर की बनावट से महिलाओं की सुंदरता को आंकने से जुड़ी यह अब तक की सबसे बड़ा अध्ययन है।

अध्ययन में शामिल प्रोफेसर रॉब बूक्स ने कहा कि सुंदरता को लेकर की गई ज्यादातर अध्ययन धड़, कमर और नितंबों के आकार के आकलन पर ही आधारित रहे हैं। लेकिन हमने अपने अध्ययन में पाया है कि बांहों की लंबाई और आकार भी सुंदरता के मामले में एक बड़ा पैमाना हैं। यह पूरे शरीर की बनावट और वजन में एक तरह से चार चांद लगाने का काम करता है। इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) और एचडब्ल्यूआर (हिप-टू-वेस्टरेश्यो) किसी भी महिला में आकर्षण के सबसे बडे़ पैमानों में से हैं।

बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

बीयर पीने से महिलायों को हो सकता है चर्मरोग

बीयर की दीवानी महिलाएँ सावधान हो जाइए क्योंकि एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि नियमित रूप से बीयर पीने से महिलाओं में चर्म रोग का खतरा 70 फीसदी तक बढ़ सकता है।


विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कुल जनसंख्या के दो से तीन प्रतिशत लोग चर्म रोग से पीड़ित हैं। इस रोग में त्वचा पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं, जिसमें जलन होती है।

‘लाइवसाइंस’ की खबर के मुताबिक, हमेशा से माना जाता है अल्कोहल पीने वालों पर इस रोग का खतरा मंडराता है। इसी संबंध का पता लगाने के लिए डॉक्टर अबरार ए कुरैशी के नेतृत्व किया गया।

शनिवार, 28 अगस्त 2010

क्‍या गरीबों को अपनी गरीबी पर शर्म भी आती है? जानने के लिए 375 करोड़ खर्च होंगे

गरीबों को अपनी गरीबी पर शर्म भी आती है क्‍या? इस सवाल का जवाब जानने के लिए बाकायदा एक शोध होने जा रहा है। यह शोध 8 देशों में होगा। इनमें भारत भी शामिल है, जहां रोज गरीबी के कारण औसतन 8 लोग जान दे देते हैं। शोध पर 5 लाख पाउंड (करीब 375 करोड़ रुपये) खर्च होंगे। लंदन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ता गरीब व्यक्तियों और उनके बच्चों का इंटरव्यू लेंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि ये निर्धन लोग खुद के बारे में क्या सोचते हैं और समाज उनसे किस तरह का व्यवहार करता है। प्रोफेसर रॉबर्ट वॉल्कर के नेतृत्व में होने वाला यह शोध ग्रेट ब्रिटेन, नार्वे, चीन, भारत, पाकिस्तान, युगांडा, दक्षिण कोरिया और जर्मनी में किया जाएगा।


गरीब लोगों का समाज पर क्‍या प्रभाव पड़ता है, इस पर भी शोधकर्ता विस्तृत अध्ययन करेंगे। शोध के दौरान गांवों, शहरों और महानगरों में गरीबों की स्थिति का अलग-अलग आंकलन किया जाएगा। प्रोफेसर वॉल्कर का मानना है कि अभी विश्व के अलग-अलग देश गरीब और गरीबी को किस नजरिए से देखते हैं, इसकी काफी कम जानकारी है। चीन में व्यक्ति खुद को गरीब बताने से बचता है। भारत या पाकिस्तान में परिवार के सदस्य की इज्जत से खिलवाड़ पूरे परिवार की मर्यादा का प्रश्न बन जाता है।

प्रोफेसर वॉल्कर का मानना है कि सरकारी योजनाओं में शब्दों की इतनी बाजीगरी होती है कि गरीब समझ ही नहीं पाता कि इसका आशय क्या है। इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ता इसका भी अध्ययन करेंगे कि क्या सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ गरीबों तक पहुंच रहा है ?

वाल्‍कर ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस शोध से संबंधित देशों की सरकारों को गरीबों के संबंध में नीतियां बनाने में आसानी होगी।

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

यह सच नहीं कि महिलाएं गठीले बदन को पसंद करती है, सच यह है कि ........

एक ताजा अध्ययन में यह बात सामने आई है कि महिलाएं जॉन अब्राहम, अक्षय कुमार फिर सलमान खान जैसे गठीले शरीर वाले पुरुषों की तरफ भले ही आकर्षित होती हों, लेकिन सम्बन्ध बनाने के लिए वे चीजों की मरम्मत करने में सक्षम मर्दों को ही तरजीह देती हैं। तीन हजार महिलाओं पर किए गए इस शोध में जवाब देने वाली करीब 75 प्रतिशत औरतों ने कहा कि वे खुद को फिट रखने की कवायद में घंटों गुजारने वाले मर्दों के बजाय वैसे पुरुषों की तरफ ज्यादा आकर्षित होती हैं जो गैजेट तथा प्रौद्योगिकी के बारे में बेहतर रूप से समक्ष होते हैं।

डेली एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक करीब 50 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वे अपने घर में ऐसे व्यक्ति को देखना चाहती हैं जो टेलीविजन, स्टीरियो तथा कम्प्यूटर में होने वाली तकनीकी खराबियों को दूर करने में सक्षम हो। आधी से ज्यादा महिलाओं ने कहा कि चीजों को बनाने की काबिलियत रखने वाले व्यक्ति के साथ रहने से उन्हें अच्छा महसूस होता है। बहरहाल, तीन में से सिर्फ एक महिला ने ही गठीले बदन वाले पुरुषों को पसंद करने की बात कही।

बुधवार, 25 अगस्त 2010

क्या आप जानते हैं कि महिलाएँ अपनी बेहद निजी बातें किसे बताती हैं!?

एक आम धारणा के अनुसार कुत्तों को पुरूषों का सबसे अच्छा मित्र माना जाता है लेकिन वास्तव में महिलाएं पालतू जानवरों के ज्यादा करीब होती हैं। एक सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि कुछ महिलाएं तो कुत्तों को अपनी बेहद निजी बातें बताती हैं। समाचार पत्र 'डेली एक्सप्रेस' के मुताबिक कुत्तों का भोजन बनाने वाली एक कंपनी विनालोट के लिए हुए सर्वेक्षण में हर पांचवीं महिला का कहना था कि जो राज वे किसी से नहीं कह पाती हैं, उन्हें वे अपने कुत्तों को बताती हैं

कुछ महिलाओं का अपने पालतू जानवर के साथ एक मजबूत रिश्ता होता है और 14 प्रतिशत प्रतिभागियों का मानना है कि उनके कुत्ते उनका दिमाग पढ़ लेते हैं। इसके विपरीत मुश्किल से 10 प्रतिशत पुरूष ही अपने कुत्तों से इतने खुले होते हैं।

ज्यादातर, पालतू जानवर को अपना विश्वसनीय साथी बताते हैं। एक तिहाई कुत्ता मालिक उन्हें अपना बहुत ईमानदार साथी बताते हैं और आधे प्रतिभागियों का कहना है कि उनके पालतू जानवर ही उन्हें ज्यादा आशावादी बनाते हैं

सोमवार, 23 अगस्त 2010

जीवन साथी की तलाश है तो घर में इंटरनेट कनेक्शन लगवा लीजिए

एक हालिया अध्ययन की रिपोर्ट कह रही है कि जीवन साथी ढूंढने के लिए ऑनलाइन डेटिंग सबसे ज्यादा प्रभावशाली जरिया है। वैसे वयस्क जिन्होंने अपने घरों में इंटरनेट कनेक्शन लगा रखे हैं उनके रोमांटिक संबंधों में पड़ने की संभावना होती है और संबंधों को जोड़ने का काम करता है इंटरनेट। जिसे यूं ही नहीं अपार संभावनाओं वाला माध्यम कहा गया है।

मतलब, अगर आपको भी एक अदद जीवन साथी की तलाश है तो घर में इंटरनेट कनेक्शन लगवा लीजिए। इसका प्रयोग करने वाले दूसरों के मुकाबले अपना जीवन साथी जल्द ढूंढ लेते हैं। जो लोग ऑनलाइन प्यार ढूंढने में विश्वास नहीं रखते उन्हें इसके लिए ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है।


अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि ऑनलाइन डेटिंग जल्द ही आपको आपके प्यार से मिलाने वाले दोस्तों की भूमिका खत्म कर देगी। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया के एसोसिएट प्रो. माइकल जे रोजेनफेल्ड का कहना है कि यह रिपोर्ट ऐसे कई अध्ययनों पर सवाल खड़ा कर रही है जिसमें कहा गया है कि इंटरनेट लोगों को रिश्तों से दूर ले जा रहा है। उन्होंने बताया कि इंटरनेट डेटिंग में सबसे ज्यादा दिलचस्पी अधेड़ उम्र के लोगों की हैं। इस लिस्ट में तलाकशुदा लोग भी शामिल हैं। अध्ययन में 4,002 वयस्कों के साथ साथ 3,009 जोड़ों को भी शामिल किया गया था

अटलांटा में अमेरिकन सोशियोलजिकल एसोसिएशन की 105वीं आम सभा में इस संबंध में अनुसंधान पत्र पेश किया गया था। इस अनुसंधान निष्कर्ष का नाम "मीटिंग आनलाइन: द राइज ऑफ द इंटरनेट एज ए सोशल इंटरमीडियरी" है।

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रविवार, 22 अगस्त 2010

लंबे समय तक चलने वाले रिश्ते, सच्चे प्यार की तलाश में हैं तो शारीरिक संबंध बनाने में जल्दबाजी न करें

नए शोध में सामने आया है कि अगर आप लंबे समय तक चलने वाले रिश्ते, सच्चे प्यार की तलाश में हैं तो आपको शारीरिक संबंध बनाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. प्यार का नशा हल्के हल्के परवान चढ़े तो ही अच्छा. अमेरिका की आयोवा यूनिवर्सिटी के शोध में खुलासा हुआ है कि जितनी धीरे रिश्ता गहराएगा वो उतना लंबा और खुश रहेगा. साथ ही सच्चे प्यार और साथी की तलाश भी पूरी होगी. शोध में सामने आया कि शारीरिक संबंध बनाने के पहले अगर एक दूसरे को अच्छी तरह से जान लिया जाए तो रिश्ते लंबे समय टिकते हैं लेकिन कई बार यूं ही हुए प्रेम प्रसंगों में सच्चा प्यार भी मिल जाता है.

इस शोध के लिए 642 बालिग लोगों से पूछताछ की गई. इनमें से 56 फीसदी ने कहा संबंधों में गंभीरता, परिवपक्वता आने से पहले उन्होंने इंतजार किया और उसके बाद ही सेक्स की तरफ मुड़े. इन लोगों के रिश्ते भी पक्के हैं. 27 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिन्होंने डेटिंग के समय ही सेक्स किया और 17 फीसदी लोगों ने बिना किसी प्रेम के शारीरिक संबंध बनाए.

आयोवा यूनिवर्सिटी में समाजविज्ञान के प्रोफेसर एंथोनी पैक कहते हैं, "उन लोगो में कुछ खास बात होती है जो सेक्स के पहले इंतजार करते हैं. वो ये है कि उनका रिश्ता हमेशा अच्छी गुणवत्ता वाला होता है." पैक का ये शोध सोशल साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. इसमें कहा गया है कि शोध बताता है कि प्रणय निवेदन छंटनी की प्रक्रिया की तरह काम करता है.

"ये चर्चा कि हम अभी सेक्स क्यों नहीं कर सकते. ये उम्मीद होती है कि जल्दी शारीरिक संबंध बनने चाहिए. लेकिन ऐसा करने में आप कोई ऐसी सूचना खो देते हैं जो आपके लिए महत्वपूर्ण हो सकती है. ये एकदम आर्थिक समीकरण की तरह है. सामान्य तौर पर किसी भी रिश्ते को बनाने में प्रक्रिया जितनी महंगी होगी उतनी ये काम भी करेगी. डाटा भी यही इंगित करता है."

लेकिन पैक ने ये भी कहा कि शोध ये नहीं कहते कि जल्दी शारीरिक संबंध बनाने का असर हमेशा खराब ही होता है. जब उन्होंने ऐसे लोगों का अध्ययन किया जिन्होंने कहा था कि वे डेटिंग के दौरान या फिर जल्दी शारीरिक संबंध बना लेते हैं. तब सामने आया कि उनके पक्के रिश्तों और सही समय का इंतजा़र करने वालों के पक्के रिश्ते में ज्यादा फर्क नहीं होता.

पैक कहते हैं,"इसका मतलब ये है कि दो अजनबी लोग किसी जगह एक दूसरे की आंखों में आंखे डाल, साथ घर जाएं, और बिलकुल हो सकता है कि वो जीवन भर चलने वाला एक रिश्ता बन जाए."

शनिवार, 21 अगस्त 2010

पुरूषों द्वारा राह पूछना, शान के खिलाफ़!

पुरुषों को हमेशा इस बात की गलतफ़हमी रहती है कि वे जो भी कर रहे हैं वह सही है, अगर आप इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखते, तो जरा इस ताजा सर्वेक्षण पर गौर फ़रमाइए। इस सर्वे में कहा गया है कि महिलाओं के मुकाबले बहुत कम पुरुष ही स्वीकार करते हैं कि वे गलत मार्ग पर चले गये हैं

सर्वे के अनुसार, पुरुष गलत मार्गों पर चले जाने की वजह से एक साल में 445 किलोमीटर (276 मील) फ़ालतू में चलते हैं. इसमें से एक चौथाई पुरुष सही दिशा पूछने के लिए कम से कम आधे घंटे का इंतजार करते हैं, जबकि 12 प्रतिशत के लिए तो दिशा के बारे में पूछना शान के खिलाफ़ है।


डेली मेल की खबर के मुताबिक, गलत दिशा में भटक जाने की वजह से एक पुरुष को पूरे जीवनकाल में, पेट्रोल जैसे ईंधन में ही दो हजार पाउंड (डेढ़ लाख रूपए) का चूना लग जाता है. इसके विपरीत महिलाएं गलत दिशा में भटकने से एक साल में करीब 412 किलोमीटर (256 मील) बेकार में चलती हैं.

शीलास व्हील्स कार इनश्योरेंस में एक दिलचस्प बात यह सामने आई है कि सभी चालकों में से 34 प्रतिशत, पुरूष की बजाए महिला से सही दिशा के बारे में पूछते हैं। सर्वे में पाया गया कि करीब 74 प्रतिशत महिलाओं को दिशा पूछने में कोई पछतावा नहीं है। वहीं 40 फ़ीसदी पुरुषों ने कहा कि अगर उन्होंने किसी अजनबी से दिशा के बारे में पूछा तब भी हमेशा उन पर विश्वास नहीं किया।

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

महिलायों द्वारा बाजार से खरीदे गए सामान पर कीमत वाला स्टीकर क्यों गायब मिलता है!?

मैं भी अक्सर सोचता था कि आखिर महिलायों द्वारा लाये गये कपड़ों में कीमत वाला कागज़ कहाँ गायब हो जाता है। अब जा कर इस शक की पुष्टि हुई है कि महिलाएं बाजार से की गई खरीदारी अक्सर अपने साथी या घर के पुरूष सद्स्य से छिपाती हैं। ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन में दस में से आठ महिलाओं ने माना कि वह नियमित खरीदारी करने के बाद घर पहुंचने से पहले सामान की असली कीमत छिपाने के लिए प्राइस टैग उतार देती हैं।

इस अध्ययन से पता चला कि लाखों महिलाएं कपड़ों, जूतों और अन्य छोटी-मोटी वस्तुओं की कीमत छिपाने की कोशिश करती हैं। 3000 महिलाओं पर हुए इस सर्वे की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दो-तिहाई महिलाएं खरीदारी करने के बाद अक्सर अपने पार्टनर को बताती हैं कि उन्हें यह सामान बहुत सस्ते दामों में मिल गया। वहीं अन्य महिलाओं का कहना था कि ये सामान सेल में खरीदा था। एक चौथाई ने बताया कि वे नए खरीदे कपड़ों को यह कहकर छिपाती हैं कि ये कपड़े पुराने हैं।


अध्ययन दल के एक सदस्य के अनुसार, झूठ बोल रही महिलाओं की इस आदत के लिए जिम्मेदार है उनका इस तरह फिज़ूल पैसे खर्च करने के लिए खुद को दोषी महसूस करना। आखिर उनके पास हर अवसर पर पहनने के लिए कुछ ना कुछ रहता है, इसलिए खरीदारी कर घर आते आते उन्हें एक अपराध-बोध सा होने लगता है।

और भी कई रोचक तथ्य हैं आप भी पढ़ लीजिए यहाँ क्लिक कर

गुरुवार, 19 अगस्त 2010

अपनी महिला साथी पर निर्भर पुरूष द्वारा उन्हें धोखा देने की संभावना अधिक

एक अनोखे शोध में यह पया गया है कि अपनी महिला साथी पर निर्भर रहने वाले पुरुषों की उनको धोखा देने की अधिक संभावना होती है। जबकि आर्थिक रूप से निर्भर महिलाओं के मामले में यह बात उलट है। आय में असमानता और बेवफाई के बीच संबंध की जांच करने वाले इस शोध में कहा गया है कि हो सकता है कि धोखा देकर पुरुष अपनी मर्दानगी दिखाना चाहते हों क्योंकि वे सोचते होंगे कि अपने पार्टनर की कमाई पर निर्भर रहने से उनके पुरुषत्व को खतरा पैदा हो जाता है।

महिलाओं के मामले में आर्थिक निर्भरता का इससे उलट असर होता है। वे अपने पुरुष साथी पर जितना ज्यादा निर्भर होती हैं उतना ही उनकी ओर से बेवफाई की संभावना कम होती है। इस शोध में 18 से 28 की उम्र के विवाहित या साथ रहने वाले महिला-पुरुष के जोड़ों को शामिल किया गया था।

इसमें देखा गया कि जो पुरुष पूरी तरह महिला साथी की कमाई पर निर्भर थे, उनकी ओर से अपने साथी को धोखा देने की संभावना उन पुरुषों से पांच गुना थी जो पार्टनरशिप में बराबर की राशि डालते थे। आर्थिक निर्भरता और बेवफाई में संबंध आयु, शिक्षा का स्तर, आय, धार्मिकता और संबंधों को लेकर संतोष के आधार पर लुप्त हो जाते हैं।

मुख्य शोधकर्ता क्रिस्टीन मंश ने कहा, यह संभव है कि पार्टनर से कम कमाने वाले पुरुष खुश नहीं रहते। वे धोखा भी इसीलिए करते हैं क्योंकि वे खुश नहीं होते। एक विडम्बना यह भी है कि जो लोग अपने साथी से ज्यादा कमाते हैं उनकी भी धोखा देने की अधिक संभावना होती है।

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

सुंदरता के दम पर अच्छी नौकरी पाने की चाह रखने वाली महिलाएं संभल जाएं

केवल सुंदरता और सही शरीर के दम पर अच्छी नौकरी पाने की चाह रखने वाली महिलाएं जरा संभल जाएं। कोलरेडो के डेवर बिजनस स्कूल द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसा ये जरूरी नहीं कि बॉस आकर्षक और खूबसूरत महिलाओं का पक्ष लेते है। हाल ही में सामाजिक मनोविज्ञान के जर्नल में प्रकाशित इस सर्वे में बताया गया है कि सुंदरता का एक बदसूरत पक्ष भी है। विशेष तौर पर उन महिलाओं के लिए जो समाज में शारीरिक सौंदर्य के बल पर नौकरी की तलाश करती हैं।.यह सही है कि कार्यस्थल पर लगभग सभी खूबसूरत महिला सहकर्मी चाहते हैं लेकिन एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि कुछ खास तरह की नौकरियों की बात जब आती है तो इन आकर्षक महिलाओं को अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता है।


कोलोराडो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि मर्दों का काम समझे जाने वाली नौकरियों की बात जब आती है तो इन खूबसूरत महिलाओं को भेदभाव का शिकार होना पड़ता है क्योंकि इस तरह की नौकरियों में व्यक्ति की सूरत कोई खास मायने नहीं रखती है।

अध्ययन में पाया गया कि मैनेजर, शोध और विकास, वाणिज्य निदेशक, मेकेनिक इंजीनियर और कंसट्रक्शन सुपरवाइजर जैसे कार्यो में लिए उन्हे महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है। अध्ययन में शोध दल की अगुवाई करने वाली स्टेफनी जॉनसन ने कहा कि इस तरह के पेशों में किसी महिला का खूबसूरत होना उसके लिए काफी नुकसानदेह पाया गया। अन्य सभी तरह की नौकरियों में आकर्षक महिलाओं को तरजीह दी गई।

हालांकि सर्वे के मुताबिक आकर्षक पुरूषों को इस खूबी के कारण नुकसान नहीं उठाना पड़ता। फिर भी आमतौर पर ये पाया गया है कि लोग इस खूबी का आनंद लेते है। उन्हें मोटी तनख्वाह मिलती है, काम का आंकलन अच्छा किया जाता है, बेहतर रैंकिंग की जाती है और सुनवाई के दौरान उनके पक्ष में निर्णय किए जाते हैं।

सोमवार, 16 अगस्त 2010

यदि आप महिलाओं को आकर्षित करना, अपने करीब लाना चाहते हैं तो ...

समाचार पत्र 'टेलीग्राफ' में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट में पहली बार यह सामने आया है कि महिलाओं को भी पुरूषों पर कौन सा रंग अच्छा लगता है? इस अध्ययन में पाया गया कि महिलाओं को वे पुरूष ज्यादा आकर्षक लगते हैं जो लाल रंग के वस्त्र पहने। इसलिए यदि आप महिलाओं को आकर्षित और उन्हें अपने करीब लाना चाहते हैं तो लाल रंग का चुनाव कीजिए। इसी तरह महिलाओं को पुरूषों की वे तस्वीरें ज्यादा सुहाती हैं जिनमें लाल रंग की चौखट या फ्रेम हो। लाल रंग को महिलाओं के प्रति पुरूषों का आकर्षण बढ़ाने वाला और खेल में अच्छे प्रदर्शन को बढ़ावा देने वाला रंग माना जाता है।

अमेरिका के रोशेस्टर विश्वविद्यालय और जर्मनी के म्यूनिख विश्वविद्यालय के शोधकर्ता एंड्रयू इलियट कहते हैं, 'आमतौर पर लाल रंग को केवल महिलाओं के लिए आकर्षक रंग माना जाता है।' उन्होंने कहा कि उनका अध्ययन बताता है कि लाल और आकर्षण के बीच का संबंध पुरूषों को लुभाता है। जर्नल फॉर एक्सपेरीमेंटल साइकोलॉजी में प्रकाशित हुए अध्ययन के लिए 25 पुरूषों और 32 महिलाओं को एक आदमी की श्वेत-श्याम तस्वीरें दिखाई गईं। इनमें से एक तस्वीर लाल पृष्ठभूमि में ली गई थी और दूसरी सफेद पृष्ठभूमि में। इसके बाद अध्ययन में शामिल लोगों से इन तस्वीरों के प्रति आकर्षण से संबंधित तीन प्रश्न पूछे गए थे। महिलाओं ने आदमी की लाल रंग की फ्रेम से घिरी तस्वीर को ज्यादा आकर्षक बताया, जबकि पुरूषों के साथ ऎसा कुछ नहीं था।

एक अन्य प्रयोग में महिलाओं को एक आदमी की लाल और हरी पोशाक की तस्वीरें दिखाई गईं। इसमें भी महिलाओं को लाल पोशाक वाली तस्वीर ज्यादा आकर्षक लगी। वैसे अलग-अलग संस्कृतियों में लाल रंग का मतलब अलग-अलग है लेकिन सभी देशों की महिलाओं को लाल रंग के परिधानों में पुरूष ज्यादा आकर्षक लगते हैं।

19 पृष्टों की यह रिपोर्ट यहाँ से डाउनलोड की जा सकती है। (पीडीएफ़, 190 KB)

शनिवार, 31 जुलाई 2010

स़डक हादसों की वजह खूबसूरत ल़डकियां और उनका पहनावा!

बात केवल भारत की नहीं सभी जगह लगभग यही हाल है जैसा कि एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि ब्रिटेन में गर्मियों में पुरूष अधिक कार दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं क्योंकि कार चलाते वक्त उनका ध्यान छोटे कप़डे पहने ल़डकियों की ओर भटक जाता है। अब वहां ठण्ड इतनी रहती है कि गर्मियों में ही कम कपडे पहने जाते हैं!


29 फीसदी पुरूषों ने स्वीकार किया है कि गर्मियों में ग़ाडी चलाते वक्त वे मिनी स्कर्ट और छोटे टॉप पहनने वाली ल़डकियों और महिलाओं को देखने के चक्कर में स़डक पर एकाग्रता नहीं बना पाते। कुल 1300 से अधिक चालकों पर किए गए सर्वेक्षण में पाया गया है कि इनमें से 25 फीसदी पुरूष चालक पिछले पांच वर्षो में कम से कम एक बार दुर्घटना का शिकार जरूर हुए या फिर बाल-बाल बच गए, जबकि 17 फीसदी महिलाओं के नजर वाहन चलाते वक्त भटके।

मनोवैज्ञानिक डोना डॉवसन ने इस बारे में कहा, ""सर्वेक्षण से पता चलता है कि महिलाओं की तुलना में पुरूष ज्यादा दुर्घटना के शिकार होते हैं।"" इस सर्वेक्षण को कराने वाली कार बीमा कंपनी शेइलास के मुताबिक पिछले साल जून से अगस्त के बीच महिलाओं की तुलना में 16 फीसदी अधिक पुरूषों ने बीमा का दावा किया। इसके विपरीत केवल तीन फीसदी महिलाओं ने माना कि वे गर्मियों में पुरूषों के पहनावे से आकर्षित होती हैं और वाहन चलाते समय वे उन्हें देखती हैं।

शुक्रवार, 18 जून 2010

चाय पीने से गठिया का खतरा बढ़ता है

चाय के शौकीनों के लिए यह एक बुरी खबर हो सकती है। एक नए अध्ययन में पता चला है कि चाय पीने से गठिया का खतरा बढ़ता है।

शोधकर्ताओं ने 76 हजार से भी ज्यादा महिलाओं पर किए अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है। अध्ययन में पाया गया कि जिन महिलाओं को चाय पीने की आदत थी, उनमें गठिया का खतरा बढ़ गया, जबकि कॉफी या दूसरे पेय पदार्थो का सेवन करने वाली महिलाओं में गठिए का असर नहीं देखा गया। शोधकर्ताओं के अनुसार दिन भर में चससर कप से ज्यादा चाय पीने वालों में गठिए का खतरा 78 फीसदी तक बढ़ गया।

हालांकि, ऎसा नहीं है कि ज्यादा पीना ही सेहत के लिए खतरनाक हो। शोधकर्ताओं के अनुसार कम चाय पीने वालों को गठिए का खतरा होता है। अध्ययन के दौरान पाया गया कि जिन लोगों ने 4 कप से कम चाय पी, उनमें भी आमलोगों (जो चाय नहीं पीते)के मुकाबले गठिए का खतरा 40 फीसदी तक अधिक रहता है। अमरीका की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के प्रोफेसर क्रिस्टोफर कॉलिंस के अनुसार अध्ययन से प्राप्त नतीजों ने उन्हें अचरज में डाल दिया है।

कॉलिंग ने बताया कि "हमने यह पता लगाने के लिए अध्ययन किया था कि क्या चाय या कॉफी या दूसरे पेय पदार्थो का गठिए से कोई संबंध है। लेकिन अध्ययन से जो नतीजें आए हैं, वो चौंकाने वाले हैं।" शोधकर्ता के अनुसार "चाय और कॉफी के सेहत पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में कभी इस तरह से हमने नहीं सोचा था। हमें लगता था कि चाय अथवा कॉफी का सेहत पर पड़ने वाला असर लगभग एकजैसा ही होगा। लेकिन हम यह देखकर आश्चर्यचकित हैं कि चाय और कॉफी सेहत पर एक-दूसरे से बिल्कुल अलग प्रभाव डालते हैं।"

मंगलवार, 1 जून 2010

चाय में दूध मिलाने से इसके सारे फायदे खत्म हो जाते हैं।

सुबह-सुबह उठने के बाद एक कप गर्म-गर्म चाय की सभी को तलब होती है। वैसे, ज्यादातर लोगों को अपनी चाय थोड़े दूध के साथ पसंद होती है। एक ताजा सुबह देने के साथ काम के बीच में या किसी से मिलने जाने पर भी चाय हमारा साथ देती है। लेकिन दूध वाली चाय पीने के शौकीनों के लिए बुरी खबर यह है कि चाय में दूध मिलाने से इसके सारे फायदे खत्म हो जाते हैं।

जर्मनी के एक शोध समूह ने अपने अध्ययन में पाया है कि सामान्य काली चाय के कुछ कप के फायदे इसमें दूध मिलाने के साथ ही खत्म हो जाते हैं। दरअसल, दूध में मौजूद कैसीन प्रोटीन, चाय के असर को कम कर देता है।

खाद्य-विशेषज्ञ नीति देसाई कहती हैं , 'एक हद तक यह बात सच है। जिस तरह हमारे यहां चाय बनाई जाती है, वह तरीका सही नहीं है। इसकी बजाय चाय को पहले बिना दूध के उबलाना चाहिए। अगर आप बिना दूध के चाय पसंद नहीं करते, तो चाय को कप में डालते वक्त इसमें दूध मिलाएं। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि सादी काली चाय, दूध वाली चाय से बेहतर होती है।'

जड़ी-बूटी व हरी चाय के भी बहुत फायदे हैं और आमतौर पर लोग इन्हें बिना दूध के लेते हैं। हरी चाय, फैट मेटाबॉलिज्म बढ़ाती है, जिसका मतलब हुआ कि इससे शरीर में चर्बी जल्दी पिघलती है। यह देखा गया है कि दिनभर में इसके तीन से पांच कप वजन कम करने में मदद करते हैं।

जड़ी -बूटी चाय मसलन, अदरक चाय, नींबू चाय, पिंपरमिंट चाय वगैरह पाचन क्रिया, पेट दर्द, अधसीसी, गठिया और अच्छी नींद दिलाने में रामबाण का काम करती है।

सोमवार, 3 मई 2010

स्लिम दिखना चाह्ते हैं तो रसदार फल खाना बेहतर

नए शोध बताते हैं कि यदि हमेशा स्लिम दिखना चाह्ते हैं तो रसदार फल खाना बेहतर है। अध्ययन से पता चला है कि खट्टे संतरे जैसे फल के जूस को पीने से हाई फैट डाइट मिलती है। रसदार फलों को खाकर आप भी स्लिम हो सकते हैं। यह वजन को बढ़ने से रोकता है। वहीं दूसरी ओर मीठा संतरा इसके विपरीत वजन बढ़ाने में मददगार होता है। मिलान यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम ने अपने अध्ययन में पाया कि संभवत: फलों की फैट को कम करने की क्षमता इटली या यूएस में पनपी।


संतरे का गहरा रंग इसे एंटीऑक्सीडेंट बनाता है। यह प्राकृतिक रसायन की भांति काम करता है। जो कि बीमारियों को रोकता है। इस अध्ययन को इंटरनेशनल जरनल ऑफ ओबेसिटी में प्रकाशित किया गया है।

बाजार में बिकने वाले फलों के रस को शुद्ध जूस समझ कर पीना सेहत के लिए हानिकारक

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि बाजार में बिकने वाले फलों के रस को शुद्ध जूस समझ कर पीना सेहत के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। गर्मियों में फलों के डिब्बा बंद रस से बचें क्योंकि ये शरीर में शुगर पहुंचाने के अलावा और कुछ नहीं करते। यदि आपको रस पीना है, तो तत्काल निकालें और पिएं।

वैज्ञानिकों का दावा है कि फलों के ताजा रस से बच्चों की भूख बढ़ती है। रस पीने वाले बच्चे और किशोरों के शरीर में अन्य पेय पदार्थ पीने वाले बच्चों की तुलना में अधिक पोषक तत्व पहुंचते हैं। दो से पांच साल के बच्चों को शुद्ध रस पिलाने से उनके शरीर में विटामिन सी, पौटेशियम और मैग्नीशियम की उचित मात्रा पहुंचती है। जबकि डिब्बा बंद रस से शुगर के अलावा और कुछ नहीं मिलता। लुसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी एग्रीकल्चर के वैज्ञानिकों ने यह शोध किया है।

उन्होंने पाया कि रस के सेवन, फल खाने और अनाज युक्त भोजन में सीधा संबंध होता है। उन्होंने कहा फलों के सेवन से शरीर में पोषक पदार्थो के साथ ही प्रचुर मात्रा में फाइबर भी पहुंचते हैं। डाक्टर कैरोल ओ नील ने बताया, 'सौ प्रतिशत शुद्ध रस बच्चों की वृद्धि और विकास में अहम भूमिका निभाता है।' इस शोध को एक्सपेरीमेंटल बायोलाजी में प्रस्तुत किया गया।


इससे पहले भी कहीं पढ़ा था मैने कि:

बंद डिब्बों का रस भूलकर भी उपयोग में न लें। उसमें बेन्जोइक एसिड होता है। यह एसिड तनिक भी कोमल चमड़ी का स्पर्श करे तो फफोले पड़ जाते हैं। और उसमें उपयोग में लाया जानेवाला सोडियम बेन्जोइक नामक रसायन यदि कुत्ता भी दो ग्राम के लगभग खा ले तो तत्काल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। उपरोक्त रसायन फलों के रस, कन्फेक्शनरी, अमरूद, जेली, अचार आदि में प्रयुक्त होते हैं। उनका उपयोग मेहमानों के सत्कारार्थ या बच्चों को प्रसन्न करने के लिए कभी भूलकर भी न करें।

'फ्रेशफ्रूट' के लेबल में मिलती किसी भी बोतल या डिब्बे में ताजे फल अथवा उनका रस कभी नहीं होता। बाजार में बिकता ताजा 'ओरेन्ज' कभी भी संतरा-नारंगी का रस नहीं होता। उसमें चीनी, सैक्रीन और कृत्रिम रंग ही प्रयुक्त होते हैं जो आपके दाँतों और आँतड़ियों को हानि पहुँचा कर अंत में कैंसर को जन्म देते हैं। बंद डिब्बों में निहित फल या रस जो आप पीते हैं उन पर जो अत्याचार होते हैं वे जानने योग्य हैं।

सर्वप्रथम तो बेचारे फल को उफनते गरम पानी में धोया जाता है। फिर पकाया जाता है। ऊपर का छिलका निकाल लिया जाता है। इसमें चाशनी डाली जाती है और रस ताजा रहे इसके लिए उसमें विविध रसायन (कैमीकल्स) डाले जाते हैं। उसमें कैल्शियम नाइट्रेट, एलम और मैग्नेशियम क्लोराइड उडेला जाता है जिसके कारण अँतड़ियों में छेद हो जाते हैं, किडनी को हानि पहुँचती है, मसूढ़े सूज जाते हैं।

जो लोग पुलाव के लिए बाजार के बंद डिब्बों के मटर उपयोग में लेते हैं उन्हें हरे और ताजा रखने के लिए उनमें मैग्नेशियम क्लोराइड डाला जाता है। मक्की के दानों को ताजा रखने के लिए सल्फर डायोक्साइड नामक विषैला रसायन (कैमीकल) डाला जाता है। एरीथ्रोसिन नामक रसायन कोकटेल में प्रयुक्त होता है। टमाटर के रस में नाइट्रेटस डाला जाता है। शाकभाजी के डिब्बों को बंद करते समय शाकभाजी के फलों में जो नमक डाला जाता है वह साधारण नमक से 45 गुना अधिक हानिकारक होता है।

इसलिए अपने और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए और मेहमान-नवाजी के फैशन के लिए भी ऐसे बंद डिब्बों की शाकभाजी का उपयोग करके स्वास्थ्य को स्थायी जोखिम में न डालें।

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

शराब पीने से हुए फ़ायदे को सिगरेट ख़त्म कर देती है

अगर आप थोड़ी-थोड़ी पिया करेंगे तो आपको दिल का दौरा पड़ने की संभावना कम रहेगी लेकिन अगर आपने इस दौरान सिगरेट पी ली तो ऐसा नहीं होगा. इस बात का पता ब्रिटेन में क़रीब 20 हज़ार लोगों पर किए गए एक शोध में चला है. इस दौरान पता चला कि थोड़ी शराब पीने वाले वे लोग जो सिगरेट नहीं पीते हैं उनमें सिगरेट पीने वालों की तुलना में दिल के दौरे की संभावना 40 फ़ीसदी तक कम होती है. इसका मतलब यह हुआ कि शराब पीने से हुए फ़ायदे को सिगरेट ख़त्म कर देती है. शोध के नतीजों को टोरोंटो में हुई अमरीकन एकेडमी ऑफ़ न्यूरोलॉजी की बैठक में पेश किया गया.

शोध का नेतृत्व कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने किया और इसमें 22, 254 लोगों को शामिल किया गया. इन लोगों पर 12 साल से अधिक समय तक नज़र रखी गई. इस दौरान क़रीब नौ सौ बार दिल के दौरे पड़े. एक या दो छोटे गिलास वाइन पीने वाली महिलाओं या इससे थोड़ी अधिक वाइन पीने वाले पुरुषों में दिल के दौरे की 37 फ़ीसदी कम संभावना देखी गई. लेकिन यह तभी तक ठीक था जब तक कि इन्होंने सिगरेट नहीं पी. सिगरेट और शराब पीने वाले और केवल सिगरेट पीने वालों में ख़तरे का समान स्तर देखा गया.

शोध के प्रमुख यांगमी ली कहते हैं, ''हमारे शोध के सामाजिक निहितार्थ हैं, इससे हम शराब और सिगरेट पीने और कम मात्रा में शराब पीने के ख़तरे और दिल के दौरों के बारे में समझ बना सकते हैं.'' अधिक मात्रा में शराब पीने से दिल के दौरे का ख़तरा बढ़ जाता है क्योंकि इससे ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, यह एक महत्वपूर्ण कारक है.

शराब से ख़ून पतला हो जाता है, इससे ख़ून के थक्के बनना रुक सकता है. यह कोलेस्ट्रॉल को प्रभावित करता है और धमनियों की दीवारों पर वसा जमा होने से रोकता है. वहीं सिगरेट पीने से धमनियों में ख़ून का थक्का बनने की संभावना रहती है. इससे दिल का दौरा पड़ने का ख़तरा बढ़ जाता है.

द स्ट्रोक एसोसिएशन के जो कोरनर कहते हैं, ''सिगरेट पीने और दिल के दौरे में बहुत साफ़ संबंध हैं. दिल के दौरे से होने वाली मौतों का 10 फ़ीसदी का संबंध धूम्रपान से होता है. इसलिए दिल के दौरो को कम करने के लिए धूम्रपान छोड़ना महत्वपूर्ण क़दम है.''

गुरुवार, 18 मार्च 2010

80% व्यक्ति इंटरनेट को बुनियादी अधिकार मानते हैं

दुनिया के 26 देशों में हुए एक नए सर्वे में पाया गया है कि हर पांच में से चार शख्स इंटरनेट पहुँच को बुनियादी अधिकार मानते हैं। इन देशों में भारत भी शामिल है। सर्वे इन देशों के 27 हजार वयस्क लोगों के बीच किया गया। यह सर्वे बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के लिए ग्लोबस्कैन ने आयोजित किया।

सर्वे में शामिल 87 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इंटरनेट तक पहुँच को सभी लोगों के लिए बुनियाद अधिकार होना चाहिए। सर्वे में शामिल लोगों में से कुल मिलाकर 79 प्रतिशत ने इस बात के प्रति किसी न किसी रूप में सहमति दिखाई कि इंटरनेट बुनियादी अधिकार है।

इंटरनेट पहुँच के अधिकार के प्रति मेक्सिको, ब्राजील और तुर्की जैसे देशों के प्रतिभागियों ने मजबूती से समर्थन दिखाया। सर्वे में शामिल तुर्की के 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों कहा कि इंटरनेट पहुँच बुनियादी अधिकार होना चाहिए। यह संख्या किसी यूरोपीय देश के मुकाबले कहीं ज्यादा थी। उत्तर कोरिया में सबसे ज्यादा 96 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इंटरनेट ऐक्सेस बुनियादी अधिकार होना चाहिए।

सर्वे में शामिल ज्यादातर लोगों ने कहा कि इंटरनेट का जीवन पर सकारात्मक असर पड़ता है। हर पांच में से चार शख्स ने कहा कि इंटरनेट से हमें ज्यादा आजादी मिलती है। हालांकि सर्वे में शामिल कई इंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने इंटरनेट जालसाजी और निजता को खतरे के प्रति चिंता का इजहार भी किया।

गुरुवार, 11 मार्च 2010

प्रतिदिन एक अंडा खाने से मोटापा कम किया जा सकता है

सब जानते हैं कि अंडा पोषक आहार है। लेकिन अब एक शोध का दावा है कि प्रतिदिन एक अंडा खाने से मोटापा कम किया जा सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक अंडे में विटामिन डी, विटामिन बी12, सेलेनियम और कोलिन होता है। ये तत्व मोटापा घटाने में मददगार हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, एक अंडे में करीब 80 कैलोरी होती है।

डेली मेल की खबर के अनुसार, प्रमुख शोधकर्ता और आहार विशेषज्ञ डा. केरी रक्सटन ने बताया, 'प्रतिदिन एक अंडा खाने से शरीर को आवश्यक पोषक तत्व मिलते रहते हैं। नए प्रमाणों से पता लगा है कि अंडा खाने से संतुष्टि का एहसास होने के साथ ही मोटापे पर नियंत्रण रहता है। अंडा आंखों के लिए भी फायदेमंद है।'

अध्ययन के मुताबिक, अंडे में कई लाभदायक अमीनो एसिड भी होते हैं। जो बच्चों और युवाओं के शारीरिक विकास के लिए अति आवश्यक हैं। शोध में दावा किया गया है कि अंडे में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले एंटीआक्सीडेंट उम्र के साथ होने वाले मांसपेशियों के क्षय को भी रोकते हैं।