शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

सिगरेट पीने वालों के बीच पलने वाले बच्चे मानसिक रोगी हो जाते हैं

एक नए शोध के अनुसार जिन बच्चों का पालन-पोषण धूम्रपान करने वालों के बीच होता है उनमें मस्तिष्क संबंधी बीमारियां होने की संभावना ज्यादा रहती है। हार्वर्ड के शोधकर्ताओं के अध्ययन के मुताबिक ऐसे बच्चे जो धूम्रपान करने वालों के बीच में बड़े होते हैं उनमें मस्तिष्क संबंधी बीमारियों मसलन सीखने में समस्या का सामना करना, एकाग्रता का अभाव और अत्यधिक सक्रियता जैसी बीमारियों के होने की ज्यादा आशंका रहती है।

इस शोध में पाया गया कि ऐसे बच्चे जिनके माता पिता अथवा परिवार के सदस्य धूम्रपान करते हैं उनमें से लगभग 50 प्रतिशत किसी समस्या से ग्रसित पाये गये. इसमें सीखने में समस्या का सामना करना, व्यवहार संबंधी समस्या और एकाग्रता का अभाव जैसी समस्याएं शामिल थी। धूम्रपान करने वालों के साथ रहने वाले 20.4 प्रतिशत बच्चे कम से कम एक मानसिक रोग से ग्रसित पाये गये।

शनिवार, 9 जुलाई 2011

हर तीसरी भारतीय पत्नी पिटती है और पिटना सही भी मानती है

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 35 प्रतिशत महिलाएं हिंसा का शिकार होती हैं जबकि दस प्रतिशत महिलाओं के साथ उनके पार्टनर ही यौन हिंसा करते हैं। नई दिल्ली में जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 39 प्रतिशत पुरुष और महिलाएं यह भी मानते हैं कि पति का पत्नी को पीटना ‘कभी कभी या हमेशा’ सही होता है। संयुक्त राष्ट्र महिला नाम से नवगठित संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन महिलाओं से बात की गई है उनमें से 35 प्रतिशत के अनुसार उनके पार्टनर (पति या पार्टनर) उन्हें शारीरिक रुप से प्रताडित करते हैं. इनमें से से दस प्रतिशत का कहना था कि उनके पति या पार्टनर भी उन्हें यौन हिंसा का शिकार बनाते हैं। इस रिपोर्ट में एक गैर सरकारी संस्था द्वारा किए गए सर्वे के हवाल से कहा गया है कि 68 प्रतिशत महिलाएं मानती हैं कि उत्तेजक कपड़े पहनना बलात्कार को बुलावा देना होता है। संयुक्त राष्ट्र की यह संस्था दुनिया भर में महिलाओं की स्थिति की जानकारी जुटाती है।

संस्था ने भारतीय न्याय व्यवस्था में महिलाओं की मात्र तीन प्रतिशत भागीदारी की कड़ी आलोचना की है। इस वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार भारत महिला जजों के मामले में बहुत पीछे हैं. यहां सिर्फ तीन प्रतिशत जज महिलाएं हैं और देश के हर कोर्ट में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र महिला की सह महासचिव लक्ष्मी पुरी ने जारी की। उनका कहना था कि प्रभावितों को न्याय दिलाने के लिए लैंगिक समानता अत्यंत ज़रुरी है लेकिन भारत की न्याय व्यवस्था में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम होना निराशाजनक स्थिति दर्शाता है। रिपोर्ट के अनुसार पुलिस और जजों में महिलाओं के प्रति भेदभाव के रवैय्ये के कारण कई बार महिलाएं हिंसा की रिपोर्ट लिखाने में भी हिचकिचाती हैं।

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सोमवार, 4 जुलाई 2011

महिलाओं को पाने की जद्दोजहद ने पुरूषों को बलशाली बनाया!

आम तौर पर महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले नैसर्गिक और प्राकृतिक रूप से ही कमजोर माना जाता है, लेकिन हाल के एक शोध से पता चला है कि महिलाओं को पाने की लड़ाई में अपने प्रतिद्वंद्वी पर वर्चस्व स्थापित करने की जद्दोजहद में ही पुरुषों का माथा और जबड़ा ज्यादा मजबूती से विकसित हुआ।



शोध के अनुसार अतीत में अपने साथी को पाने के लिए पुरुषों को शारीरिक ताकत का इस्तेमाल करना पड़ता था। इस क्रम में मजबूत जबड़े और मोटी खोपड़ी वाले पुरुष ही महिला साथी को पाने की लड़ाई में विजेता होते थे। इसी क्रम में क्रमिक विकास की वजह से हुए अनुकूलन के कारण कालांतर में भी पुरुषों का सिर और जबड़ा महिलाओं की अपेक्षा मजबूत विकसित होता चला गया। शोध में यह भी दावा किया गया है कि इसी क्रमिक विकास की वजह से पुरुषों की मांसपेशियां महिलाओं की अपेक्षा अधिक विकसित हुईं, जिसकी वजह से उनकी कद काठी महिलाओं के मुकाबले अधिक मजबूत और लंबी हुई।

इवोल्यूशन एंड ह्यूमन बिहेवियर शोध पत्रिका में प्रकाशित डॉ डेविड पुट्स के शोध के अनुसार मनुष्य की प्रजाति में ही नर में मांसपेशियां और मादा में वसा कोशिकाओं की वृद्वि देखी जा सकती हैं, जबकि अन्य प्रजातियों में नर और मादा में सभी प्रकार की कोशिकाओं का विकास समान रुप से हुआ है। पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय के डॉ पुट्स के बयान को रेखांकित करते हुए लंदन का डेली टेलिग्राफ लिखता है, सामान्यत: पुरुष महिलाओं की अपेक्षा 15 प्रतिशत से अधिक लंबे नहीं होते है, लेकिन ताकत के मुकाबले में लगभग शत प्रतिशत पुरुष महिलाओं से ज्यादा मजबूत होते है।

पुट्स के मुताबिक पुरुष महिलाओं की अपेक्षा अधिक आक्रामक होते है कुछ घुमंतू समुदाय में तो 30 प्रतिशत पुरुष मरने मारने की हद तक आक्रामक होते हैं। उनका मानना है कि भारी आवाज महिलाओं को आकर्षित करती है, लेकिन वास्तव में यह पुरुषों के वर्चस्व का प्रतीक है। भारी आवाज मर्द को शक्तिशाली और गंभीर बनाती है। यहां तक कि कई बार आवाज का भारीपन यौन आकर्षण से भी अधिक प्रभावी होता है। अन्य प्रजातियों की तुलना में इन्सानों के पास अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ झगड़ा करने के लिए नुकीले पंजे और दांत नहीं होते, लेकिन इस काम के लिए उन्होंने धनुष बाण, तलवार और चाकू जैसे हथियारों का निर्माण किया।

ड़ॉ पुट्स का मानना है कि हवा में रहने वाले पक्षी और पानी में रहने वाले जलचर प्राणी अपने मादा साथी को हासिल करने के लिए शारीरिक प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते, क्योंकि उनके सामने एक समय में अनेक प्रतिद्वंद्वी मौजूद होंगे, जिनपर विजय हासिल कर पाना उनके लिए संभव नही होगा।

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रविवार, 3 जुलाई 2011

तीन माह का शिशु सोते समय भी आवाज पहचान सकता है

तीन माह का बच्चा सोते समय भी किसी व्यक्ति की दु:खभरी या सामान्य आवाज को पहचान सकता है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। यह शोध किंग्स कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने किया है। उनका मानना है कि इस अध्ययन के नतीजों से भविष्य में शोध के जरिए दिमाग के कामकाज व विकास और ऑटिज्म जैसी बीमारियों के संबंध में पता लगाने में मदद मिल सकती है। शोधकर्ता के अनुसार मानवीय आवाज काफी महत्वपूर्ण सामाजिक संकेत होती है। दिमाग बहुत कम उम्र में ही इसे समझने की विशेषज्ञता दिखाना शुरू कर देता है।

शोधकर्ताओं ने जब बच्चों को सामान्य मानवीय आवाजें सुनवाईं तब उनके दिमाग का वह हिस्सा सक्रिय हो गया जो बड़े लोगों में मानवीय आवाजों को सुनने के बाद सक्रिय होता है। बच्चों को जब रोने की आवाज सुनाई गई तो उनके दिमाग का वह हिस्सा सक्रिय हो गया जो बड़ों में भावुक बातों को सुनने के बाद होता है। इसका मतलब है कि बच्चे भी विभिन्न भावनात्मक स्थितियों को समझने और उस पर सहानुभूति जताने की क्षमता रखते हैं।

शोधकर्ता डेक्लैन मर्फी ने बताया, ‘हम इस क्षेत्र में अब आगे शोध कर रहे हैं ताकि समझ सकें कि दिमाग के विकास में अंतर कैसे आता है और क्या हम सटीकता से ऐसे बच्चों की पहचान कर सकते हैं जिन्हें आगे चलकर ऑटिज्म जैसे विकार होने का खतरा है।’

अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 3 से 7 माह के बच्चों के दिमाग का स्कैन सोते समय किया। शोधकर्ताओं ने खांसते वक्त और जम्हाई लेते वक्त की सामान्य आवाजें बच्चों को सुनाईं। उन्हें पानी और खिलौनों की आवाजें भी सुनाई गईं। दोनों तरह की आवाजों के प्रति बच्चों के दिमाग की प्रतिक्रिया की तुलना की गई।

अधिक जानकारी यहाँ मौज़ूद है

शनिवार, 2 जुलाई 2011

एक अनार सौ बीमार ठीक कर सकता है

एक शोध के अनुसार अनार का जूस आपके ऑफिस के तनाव को कम कर सकता है। यह जूस हृदय गति को भी नियंत्रित करता है और साथ ही सकारात्मक सोच भी प्रदान करता है।

शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने लोगों के एक समूह को 2 सप्ताह तक 500 मिलीलीटर अनार का जूस पीने को कहा। शोध की शुरुआत और अन्त में उनकी हृदय गति को मापा गया। उनके स्वभाव, भावना और काम के बारे में भी पूछा गया। पता चला कि अनार का जूस पीने के बाद उन सभी में सकारात्मक बदलाव देखे गए। वे पहले के मुकाबले ज्यादा उत्साही, प्रेरित और सक्रिय हो गए।

क्वीन मारग्रेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता डॉ. अहमद अल दुजैली ने कहा कि यह तथ्य बिलकुल सही है कि अनार का जूस आपको तनाव से राहत देता है। यह आपको स्वस्थ भी रखता है। हमने पाया कि अनार का जूस अन्य जूस के मुकाबले सेहत के लिए कहीं ज्यादा फायदेमंद है।

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शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

बीयर पीने वालों को मच्छर कुछ ज़्यादा ही काटते हैं

बीयर प्रेमियों के लिए एक चेतावनी है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि अगर आपने अल्कोहल का सेवन कर रखा है तो मच्छर और अन्य कीड़े आपकी ओर 15 प्रतिशत ज्यादा आकर्षित होते हैं। फ्रांस के आई आर डी अनुसंधान केंद्र में वैज्ञानिकों की एक टीम ने पाया है कि अल्कोहल के सेवन से सांसों की गंध की ओर कीड़े ज्यादा आकर्षित होते हैं।


वैज्ञानिकों का मानना है कि मच्छरों ने शराब की दुर्गंध को पहचानना सीख लिया है, क्योंकि इसका सेवन कर चुके लोग काटने पर प्रतिरोध कम करते हैं डेली मेल की एक रिपोर्ट के अनुसार इस अध्ययन से मलेरिया से बचाव किया जा सकेगा जिससे दुनिया भर में 780000 लोगों की मौत हो जाती है।

अनुसंधानकर्ताओं ने इस अध्ययन का परीक्षण अफ्रीका में 2500 ऐनाफीलिस मच्छरों पर किया। उन्होंने 20 से 43 वर्ष के 25 लोंगो को चुना और उनको स्थानीय शराब पिलाई। उन्होंने पाया कि उनकी ओर 15 प्रतिशत ज्यादा मच्छर उडे़ थे।

एक पत्रिका में उन्होंने कहा कि बीयर के सेवन से अफ्रीका में मलेरिया के मुख्य कारक ऐनाफीलिस गैम्बी ज्यादा आकर्षित होते हैं।

संपूर्ण रिपोर्ट यहाँ पढ़ी जा सकती है या पीडीएफ रूप में यहाँ से डाउनलोड की जा सकती है