शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

फेसबुक बदल रहा है दिमाग की संरचना


हाल ही में हुए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि सोशल नेटवर्किंग साइट पर ढेर सारे दोस्तों वाले व्यक्तियों के दिमाग में एक खास तरह का पदार्थ ज्यादा सघन पाया जाता है जिससे इस बात की संभावना बढ़ी है कि इस तरह के साइट लोगों के दिमाग को बदल रहे हैं।

लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि जिन व्यक्तियों के फेसबुक पर बहुत ज्यादा दोस्त होते हैं, उनमें दिमाग के कुछ हिस्सों में कम ऑनलाइन दोस्तों वालों की तुलना में ज्यादा ग्रे पदार्थ पाया जाता है। दिमाग के ये क्षेत्र नामों और चेहरों को याद रखने की क्षमता से जुड़े होते हैं।

प्रोसिडिंग्स ऑफ रॉयल सोसाइटी बायोलोजिकल साइंसेज में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया कि या तो सोशल नेटवर्किंग साइट दिमाग के इन भागों को बदल देते हैं या इस तरह के दिमाग के साथ पैदा लेने वाले व्यक्ति फेसबुक जैसी वेबसाइट पर अलग व्यवहार करते हैं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. ‘न्यूयार्क पोस्ट’ ने लगभग 1000 फेसबुक और ट्विटर प्रयोक्ताओं के बीच किये गये सर्वे के आधार पर यह यह निष्कर्ष निकाला है कि इन सोशियल नेटवर्किग साइटों से दूर रखे जाने पर इनका प्रयोक्ता ड्रग एडिक्ट जैसा ब्यवहार करने लगता है और कई मामलों में वे डिप्रेशन का शिकार तक होते पाये गये हैं। खबर की खास बात यह थी कि इसमें यह लिखा था कि सोशियल नेट वर्किग से दूरी बनाने पर यह उपयोगकर्ता खुद को समाज से कटा कटा महसूस करता है। मेरी पत्नी और मैं अपने अपने तरीके से इसके निहितार्थ निकालने में जुटे है।

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  2. मित्रों की अधिकता व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा को इंगित करती है। मित्रों का होना ही महत्वपूर्ण है-चाहे वे इंटरनेट पर हों या वास्तविक दुनिया में।

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